जयपुर। साहित्य सरोवर संस्था जयपुर के तत्वावधान में सरस्वती सदन मुरलीपुरा में कवि हरिशंकर पारीक की दो पुस्तकों की समीक्षा गोष्ठी का आयोजन किया गया। प्रथम पुस्तक ‘मंथन’ की समीक्षा करते हुए वैद्य बालकृष्ण गोस्वामी ने कहा कि कवि संवेदनशील और सुधारवादी है, फलस्वरूप वर्तमान विसंगतियों, सामाजिक विषमताओं व राजनीतिक विद्रूपताओं को लेकर कविहृदय मुखर हो उठा है। इस पुस्तक में कलियुगी श्राद्ध , जंगलराज,निर्भया, मृग मरीचिका, जीवन चक्र आदि कविताएं विचारोत्तेजक हैं।
द्वितीय काव्य संग्रह ‘चिंतन ‘की समीक्षा करते हुए प्राचार्य विद्यानिधि त्रिवेदी ने कहा कि इसमें साठ से अधिक कविताएं हैं जिनमें कवि हरिशंकर ने व्यंग्य के माध्यम से पाठकों को गुदगुदाया भी है और सामाजिक व्यवस्थाओं पर तीखा प्रहार भी किया है। प्रथम कविता से ही कवि मानवता को ढूंढने व गीता सार का सरलीकरण करने हेतु प्रयासरत है।
गोष्ठी में वैद्य गोपीनाथ पारीक गोपेश ने राजस्थानी कविता ‘भायाजी जपल्यो नाम हरि को’ प्रस्तुत की। भूपेंद्र भरतपुरी की रचना ‘तेरी मेरी मेरी तेरी तूं करतो मत डोल रे, दुनियादारी छोड़ बावरे राधे राधे बोल रे ‘ सराही गई। विट्ठल पारीक ने ‘कैसे गीत लिखूं सजनी ‘का सरस प्रस्तुतीकरण किया। सुभाष चन्द्र शर्मा ने सरस्वती वंदना के उपरांत ‘सबकी अपनी लाचारी है ‘ कविता गाई। कार्यक्रम में विश्वनाथ शर्मा, विवेक श्रीवास्तव, तुलसीराम धाकड़,पी डी गुप्ता, राधेश्याम शर्मा, हरिशंकर पारीक व गणपतलाल वर्मा आदि ने विविध विषयों पर अपनी कविताएं प्रस्तुत कीं। लोकेश पारीक और प्रतीक्षा पारीक ने आभार व्यक्त किया।