पं.दीनदयाल स्मृति व्याख्यान

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जो बनाना चाहती थी वह संविधान नहीं बना सकी संविधान सभा , एक सुत्र में रहकर आपसी सहयोग करें मानव यही है रामराज्य

जयपुर। एकात्म मानवदर्शन अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान की ओर से बिड़ला सभागार में पूर्व राज्यसभा सांसद डॉ.महेशचन्द्र शर्मा की अध्यक्षता व मुख्य वक्ता प्रसिद्ध निर्माता, निर्देशक एवं अभिनेता डॉक्टर चंद्रप्रकाश द्विवेदी के मुख्य आतिथ्य में धर्म दंड धर्म राज्य एवं संवैधानिकता विषय पर आयोजित व्याख्यान में वक्ताओं ने कहा कि संविधान की सबसे बड़ी विशेषता यहीं है कि उसे हमारे लोगों ने बनाया है। लेकिन भारत की संविधान सभा वैसा संविधान नहीं बना सकी जैसा कि वो चाहती थी। यह संविधान ब्रिटिश इण्डिया एक्ट—1935 और कैबिनेट मिशन से लिए गए मसौदे से ही तैयार किया गया है।
कार्यक्रम में मुख्य वक्ता प्रसिद्ध निर्माता, निर्देशक एवं अभिनेता डॉक्टर चंद्रप्रकाश द्विवेद्वी ने कहा कि राम राज्य का मतलब, कोई किसी का शत्रु नहीं रहने वाले सभी मानव एक दूसरे का सहयोग करना ही राम राज्य है।उन्होंने कहा कि इस देश को गर्व होना चाहिए कि प्रधानमंत्री मोदी ने उस परंपरा को पुर्नजीवित किया जो हजारो सालो से चली आ रहीं थी।

द्विवेदी ने कहा कि देश में हर दिन उठने वाले प्रश्नों के उत्तर को लेकर देशवासी कई माध्यमों से लिखने का प्रयास करते है। लेकिन उन में से बहुत ही कम लोग अर्थात न के बराबर लोग मूल ग्रंथो तक कोई नहीं जाता है। देश के विद्वान् इसको लेकर प्रयास नहीं करते है। उन्होंने बताया कि पिछले दिनों सनातन धर्म को लेकर देश में एक बहस छिड़ी लेकिन धर्म की व्याख्या सही तरीके से नहीं की जाती है क्योंकि धर्म का स्वरूप बहुत ही व्यापक हैं। उन्होंने कहा कि धर्म का स्वरूप हमेशा बदलता रहेगा , लेकिन धर्म सनातन हैं।

डॉ. द्विवेदी कहा कि दो ही व्यक्ति होते हैं एक धार्मिक और एक अधार्मिक। उन्होंने कहा कि धर्म के अपमान के कारणों को जानने के लिए ग्रंथो तक पहुंच रहा हूँ। उन्होंने कहा कि धर्म पर व्याख्यान देना मेरे लिए चुनौती थी जिसे मेने स्वीकार किया। उन्होंने कहा कि दंड धर्म में प्रतीक है। दंड केवल पुरोहित ही नहीं करता हैं। इसको धारणा करने का प्रथम अधिकार विद्याध्यन करने वाले व ब्रमचर्य का पालना करने वाले स्टूडेंस्ट का हैं। उसके बाद पुरोहित का है। तीसरा सन्यासी का हैं।

उन्होंने कहा कि धर्म राज्य और राम राज्य में कोई अंतर हैं? उन्होंने कहा कि हम राम राज्य, धर्म राज्य की कल्पना करते है लेकिन कृष्ण राज्य की कल्पना नहीं करते हैं। उन्होंने कहा कि कृष्ण कभी राजा नहीं बने। अंत तक द्वारका पर शासन उग्रसेन ने ही किया था। उन्होंने कहा कि राम राज्य से लेकर अब तक भरत जैसा लोकप्रतिनिधि पैदा नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि राम के अनुसार पिता की आज्ञा ही सर्वोपरि है। वो ही धर्म है। उन्होंने पिता की आज्ञा को ही धर्म मानते हुए वनवास स्वीकार किया। उन्होंने कहा कि वर्तमान पीढ़ी को रामायण का अयोध्या कांड जरूर देखना पढ़ना चाहिए।
धर्म की व्याख्या करने वाली कोई अंतिम पुस्तक नहीं
पूर्व सांसद डॉ.महेशचन्द्र शर्मा ने कहा कि धर्मदण्ड शासन का आधार होता है। भारत में धर्मदण्ड की व्यवस्था आदिकाल से चली आ रही है। उन्होंने कहा कि धर्म राज्य का निकटतम अंग्रेजी शब्द रुल आॅफ लॉ है। शर्मा ने कहा कि धर्म की व्याख्या करने वाली अब तक कोई अंतिम पुस्तक नहीं है। धर्म क्या है यह बहस जारी है। धर्म वहीं होता है जिसे आप जानकार आचार—व्यवहार में उतारतें है।

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