उत्तराखंड की जनता ने बना लिया है भाजपा के कुशासन से मुक्ति का मन : सिहाग

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चूरू। उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल के नरेंद्र नगर विधानसभा प्रभारी चूरू के युवा नेता हेमंत सिहाग का कहना है कि उत्तराखंड की जनता भारतीय जनता पार्टी के कुशासन से ऊब चुकी है और आने वाले चुनाव में इस कुशासन से मुक्ति का मन उत्तराखंड की जनता ने बना लिया है। पेश है उत्तराखंड यात्रा करके लौटे विधानसभा प्रभारी हेमंत सिहाग से हमारे प्रतिनिधि की बातचीत के अंश:-

चुनाव प्रभारी के तौर पर यात्रा कर लौटे हैं आप, क्या अनुभव रहे आपके

आलाकमान के निर्देशानुसार टिहरी गढवाल क्षेत्र के नरेन्द्र नगर का दौरा किया था। उत्तराखंड की जनता भाजपा के कुशासन से परेशान है और आगामी चुनावों में भाजपा को करारा जवाब देने के मूड में लग रही है। जनता के मूड को देखते हुए इसमें कोई संदेह नहीं रहा कि कांग्रेस पार्टी उत्तराखंड में पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाने जा रही है।

उत्तराखंड में चुनावी मुद्दे क्या हैं आपकी राय में?

जहां मेरा भ्रमण हुआ, वह प्रमुखत: पहाड़ी क्षेत्र है। वहां के लोगों की समस्याएं अन्य क्षेत्रों से अलग है। वहां पहाड़ों पर भूस्स्खलन से आए दिन रास्तों के बाधित होने की समस्या रहती है। गावों का सम्पर्क अन्य क्षेत्रों से बिल्कुल टूट सा जाता है जिसके चलते नागरिकों को बड़ी परेशानियों का सामना करना पडता है। इसी प्रकार चिकित्सा की अगर बात करें तो राज्य में रूरल एरिया में चिकित्सकीय सेवाओं का अभाव है। गावों में चिकित्सकीय संस्थानों का अभाव है।इसी प्रकार शिक्षा के क्षेत्र में भी काफी अधिक संभावनाएं हैं। चुनाव विकास के मुद्दे पर ही लड़ा जाएगा। उत्तराखंड का वोटर भावनाओं में बहकर वोट नहीं देता है।

केंद्र सरकार के कामकाज को लेकर उत्तराखंड के मतदाताओं की क्या राय है?

राष्ट्रीय मुद्दों की छाप भी यहां के मतदाताओं के दिलोदिमाग पर दिख रही है। उत्तराखंड का वोटर केन्द्र सरकार की रीति—नीति से बेहद नाखुश है। पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस व आम दिनचर्या में प्रयोग होने वाले अन्य खाद्य पदार्थों की लगातार बढती कीमतों के चलते आमजन में केन्द्र की भाजपा सरकार के प्रति रोष है। वोटर्स की सजगता की स्थिति यह है कि चुनाव के दरिम्यान चौखट पर पहुंचने वाले प्रत्याशियों से सीधा सवाल करने से भी वे पीछे नहीं हटते। चूंकि इस बार, कोरोना के साये में चुनाव हो रहे हैं, लिहाजा गुजरे दो सालों में कोरोना प्रबंधन में सरकार और जनप्रतिनिधियों की भूमिका का असर भी मतदाता के मन मस्तिष्क पर दिखेगा।

क्या प्रदेश सरकार से लोग खुश नहीं हैं?

बिलकुल नहीं, जनता सरकार बदलना चाहती है। प्रदेश सरकार ने पिछले चुनावों के दौरान जो वायदे किए थे उनको पूरा करने में एकदम विफल रही है। जनता में सरकार के खिलाफ आक्रोश है। प्रदेश की जनता ने भाजपा को सबक सिखाते हुए आगामी चुनावों में कांग्रेस को सत्ता सौंपने का मन बना लिया है।

किस आधार पर कहते हैं कि उत्तराखंड में कांग्रेस की सरकार बनेगी?

सीधी सी बात है, अपने साढे चार साल के कार्यकाल में भाजपा को 3 बार मुख्यमंत्री बदलने पड़े। ये साफ दर्शाता है कि प्रदेश की जनता ही नहीं, वरन भाजपा का केन्द्रीय नेतृत्व भी अपनी पार्टी के मुख्यमंत्रियों के कामकाज से संतुष्ट नहीं है। भाजपा की बौखलाहट से साफ पता चलता है कि वे प्रदेश की जनता के साथ न्याय कर पाने में विफल रहे हैं। अगर भाजपा की सरकार ने प्रदेश में जनहित के कार्य किए होते तो बार—बार मुख्यमंत्री बदलने की जरूरत ही क्यों पड़ती। जहां सत्ता में आने के बाद भाजपा नेताओं व कार्यकर्ताओं ने जनता से दूरी बना ली थी, वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस के उत्तराखंड प्रभारी देवेन्द्र यादव के नेतृत्व में डॉ. कृष्णा पूनियां एवं कुलदीप इंदौरा की मेहनत के चलते पूरे प्रदेश में कार्यकर्ताओं ने ग्रासरूट लेवल पर जाकर काम किया है।प्रदेश में बूथ लेवल कमेटियों की मीटिंग बूथ वाइज हो चुकी है। कार्यकर्ताओं ने आमजन के बीच जाकर उनकी समस्याओं को समझने का प्रयास किया है। सम्पूर्ण डाटा एकत्र कर आलाकमान को भिजवाया गया है ताकि प्रदेश की समस्याओं के अनुरूप घोषणा पत्र तैयार हो सके और आगमी चुनावों में सरकार बनाने के बाद उनका निस्तारण किया जा सके।

किसान आंदोलन का वहां के राजनीतिक परिदृश्य पर क्या असर है?

पहाडी क्षेत्रों में किसानों की संख्या कम है, लेकिन तलहटी के इलाकों में किसानों ने केन्द्र सरकार के तीनों काले कृषि कानूनों का जमकर विरोध किया था। जब तीनों काले कानूनों को रद्द कराए जाने की मांग को लेकर एक साल तक देशभर के किसानों ने सड़क पर प्रदर्शन किया था, तब उत्तराखंड के किसानों ने कंधे से कंधा मिलाकर किसान आंदोलन का समर्थन किया था। इस दौरान 700 से ज्यादा किसानों को अपने प्राणों की आहुति देनी पडी। किसान आंदोलन का खामियाजा आगमी चुनावों में भाजपा को भुगतना पडेगा।

आपको नहीं लगता कि उत्तराखंड चुनाव में आम आदमी पार्टी खेल बिगाड़ रही है?

हम सब जानते ही हैं कि आम आदमी पार्टी भाजपा की बी टीम जैसी है। लेकिन उत्तराखंड का आम आदमी ही, आम आदमी पार्टी को नहीं जानता। चुनावी सर्वेक्षण की अगर मानें तो आम आदमी पार्टी पूरे प्रदेश में अधिकतम 1 सीट को ही प्रभावित कर सकती है। मेरा मानना है कि आम आदमी पार्टी उत्तराखंड में अपना खाता भी नहीं खोल पाएगी।

जातिगत राजनीति की वहां क्या स्थिति है और इसका फायदा किसको मिलने की उम्मीद है?

देखिए, उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है। वहां का मतदाता चुनावों में परिपक्वता का परिचय देता आया है। जहां तक मेरा अनुभव है, क्षेत्रवाद और जातिवाद जैसी संकीर्ण विचारधाराओं को वहां के लोग तवज्जों नहीं देते हैं। उत्तराखंड के लोग सीधे—सच्चे लोग है। भाजपा वोटरों को जातिवाद की घुट्टी पिलाने के हर हथकंडे अपनाती रही है लेकिन इसका असर उत्तराखंड के वोटर पर देखने को नहीं मिला है। उत्तराखंड के लोग सामाजिक समरसता की मिसाल हैं। इतिहास गवाह है कि यहां जातीय आधार पर ध्रुवीकरण करने के प्रयास जिस भी नेता ने किए हैं, क्षेत्र के वोटरों ने उसे सबक सिखाया है।

कोरोना को देखते हुए चुनाव आयोग ने चुनाव प्रचार वर्चुअली करवाने का फैसला किया है, इसे कैसे देखते हैं? सरकार का कोरोना प्रबंधन किस प्रकार परिणाम को प्रभावित करेगा?

कोरोना की तीसरी लहर चरम की तरफ बढती दिख रही है, इस लिहाज से चुनाव आयोग के फैसले का हम स्वागत करते हैं। कोरोना काल में पहली और दूसरी लहर के दौरान प्रदेश में कोरोना प्रबंधन की जो स्थिति रही, उसका असर किसी ना किसी रूप में वोटर्स के दिलोदिमाग पर नजर आ रहा है। जहां एक तरफ राजस्थान जैसे स्टेट में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और राज्य सरकार ने बेहतरीन कोरोना प्रबंधन किया, वहीं उत्तराखंड सरकार कोरोना संक्रमण की रोकथाम और उपचार के इंतजामों में पूरी तरह फेल रही। कोरोना की पहली और दूसरी लहर के दौरान उत्तराखंड प्रदेश की जनता कोरोना संक्रमण से प्रभावित थी, चारों तरफ निराशा का माहौल था। जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष चल रहा था, तब उत्तराखंड के जनप्रतिनिधियों की भूमिका क्या रही, उनके सबल और कमजोर पक्ष को इन चुनावों में मतदाता किस पैमाने पर परखेगा, यह तो आने वाला समय बताएगा, लेकिन ये तय है कि मतदान के दिन वोटर्स के मत व्यवहार पर इसका असर जरूर दिखेगा।

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