चूरू । स्थानीय लोक संस्कृति शोध संस्थान नगर श्री में रविवार को सायं 127 वीं साहित्य गोष्ठी का आयोजन हुआ। सचिव ने बताया कि पं. कुंज विहारी शर्मा की स्मृति में सृजन से साक्षात्कार कार्यक्रम के अन्तर्गत जयपुर की साहित्यकार डॉ. रचना शेखावत ने अपनी रचनाआें की प्रस्तुतियां दी। कार्यक्रम का शुभारंभ मां सरस्वती की प्रतिमा व पं. कुंज विहारी शर्मा के चित्र पर धूप बत्ती प्रजवलित कर किया गया। आत्मकथ्य के पश्चात् डॉ. रचना शेखावत ने सरस्वती वंदना, मरुधरा भूमि वंदना के साथ अपनी राजस्थानी भाषा की सरस कविताआें- वीरो केसरियों साफो… धरो माथै…, सिंगारपेटी मांय कुरळांंवता सूस्या…, कविता पर श्रोताआें ने खूब दाद दी। हाथी दांत के चुड़ले को नये दृष्टिकोण से प्रस्तुत करने वाली कविता- हाथी दांत रो चुड़लो उजळांवती बाजरी रै आटै सूं… को खूब सराहा गया। विभिन्न आयामों व प्रतीकों के रूप में प्रस्तुत करने वाली कविता- दीवो, छतरी, होम आदि पर खूब तालियां बजी। उनकी ओळयूं कविता ने श्रोताआें को खूब प्रभावित किया। कविता तीरस, नदी री पाळ, तीजो तार, किलोळ, तू हिमाळै सो ऊंचो, अंतर दीठ आदि रचनाआें पर खूब वाहवाही लूटी। हिन्दी की रचनाआें- ओ पिता ले आओ नदी को वापस…, गांव बुलाता है…, तुम्हारा जो स्वपन है बांटूगी नहीं…, ने खूब समां बांधा। गजल लोगां की निगाहों के निशाने हुए… खूब मन भाई। चर्चा सत्र में रामसिंह बीका व हरिसिंह ने अपने उद्गार व्यक्त किये। विशिष्ट अतिथि डॉ. सुरेन्द्र डी. सोनी ने डॉ. रचना शेखावत की रचनाआें पर समीक्षात्मक टिप्पणियां की। प्रो. भंवरसिंह समौर ने अपना सार गर्भित उद्बोधन दिया। साहित्य गोष्ठी के साथ काशीप्रसाद शर्मा के प्रकृति जनित चित्रों की प्रदर्शनी का उपस्थित श्रोताआें ने अवलोकन कर खूब सराहा। कार्यक्रम के अंत में नगर श्री परिवार द्वारा साहित्यकार रचना शेखावत का शॉल ओढ़ाकर व प्रतीक चिन्ह प्रदान कर सम्मानित किया गया। संचालन रमेश सोनी एडवोकेट ने किया।