मातृभाषा जैसी अभिव्यक्ति दूसरी भाषा में संभव नहींः डॉ जाखड़

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साहित्य अकादेमी अनुवाद पुरस्कार से पुरस्कृत डॉ कृष्णा जाखड़ ने गुवाहाटी में ट्रांसलेटर्स मीट में लिया भाग

चूरू। साहित्य अकादेमी के अनुवाद पुरस्कार 2017 से पुरस्कृत लेखिका डॉ कृष्णा जाखड़ ने शनिवार को गुवाहाटी में अकादेमी उपाध्यक्ष माधव कौशिक की अध्यक्षता में हुई ट्रांसलेटर्स मीट में भाग लिया और सभी भारतीय भाषाओं के अनुवादकों-लेखकों के बीच अपनी सृजन एवं अनुवाद प्रक्रिया से जुड़े अनुभव रखे।
गुवाहाटी के विवेकानंद केंद्र इन्स्टीट्यूट ऑफ कल्चर में हुए इस सम्मेलन में कृष्णा ने कहा कि लेखक के लिए अपनी मातृभाषा में जो अभिव्यक्ति व सृजन संभव है, वह किसी दूसरी भाषा में नहीं। दसवीं कक्षा तक राजस्थान के दूसरे सभी बालकों की तरह मुझे भी यही बताया जाता रहा कि हिंदी हमारी मातृभाषा है। ऐसे अनुभव और पृष्ठभूमि के बाद मातृभाषा में सृजन व अनुवाद के लिए अकादेमी से पुरस्कृत होना मेरे लिए बहुत बड़ी बात है।
अपनी पुरस्कृत अनुवाद कृति ‘गाथा तिस्ता पार री’ की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि पूरा उपन्यास आज भी मेरे अंदर तस्वीर बने बैठा है। उपन्यास का पात्र ‘बाघारू’ तो बार-बार जीवंत हो उठता है और अनेक सवाल करता है। कई बार मन में खयाल आता है कि ‘बाघारू’ कहां गया होगा, कहां रहता होगा। कहीं वह उस गाड़ी में चढ़कर रास्तों को पार करते हुए राजस्थान में तो नहीं आ गया है। खोजने निकलूं तो क्या पता, कहीं मिल ही जाए। कृष्णा ने कहा कि वे किसान परिवार में पैदा हुई और किसान के शोषण व संघर्ष को करीब से देखा है लेकिन उपन्यास पढने के बाद उस शोषण को भी महसूस किया जो सक्षम किसान द्वारा किया जाता है।
सम्मेलन में सभी 24 भारतीय भाषाओं के अनुवादकों ने अपनी रचना प्रक्रिया साझा की। अकादेमी सचिव के श्रीनिवास राव ने स्वागत उद्बोधन में आयोजकीय रूपरेखा रखी। अकादेमी उप सचिव रेणुमोहन भान ने आभार जताया। इस दौरान अकादेमी में राजस्थानी भाषा परामर्श मंडल के संयोजक मधु आचार्य, साहित्यकार कमल रंगा, हरीश बी. शर्मा, दुलाराम सहारण सहित सभी भाषाओं के सृजनधर्मी मौजूद थे।

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