पंच प्रण का सिद्धांत है विरासत पर गर्व, गुलामी के चिन्हों से मुक्ति और नागरिक कर्तव्य का पालन

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आदर्श विद्या मंदिर में हुई गोष्ठी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का आयोजन

चूरू। स्थानीय आदर्श विद्या मंदिर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्वावधान में रविवार को आयोजित’स्वआधारित भारत का नवोत्थान’ विषयक गोष्ठी में प्रान्तीय सेवा प्रमुख सूर्य प्रकाश ने कहा है कि युगानुकूल परिर्वतन करने वाले लोग भारतीय हैं, जड़ नहीं हम चेतन है, जड़ों को मजबूत कर नव को सिंचित करना हमारी वृत्ति रही है। परिवर्तन हमारी स्वीकार्यता रही है। प्रान्त सेवा प्रमुख ने कहा आज हम कही न कही भटक रहे हैं। इसलिए हमारा स्व: क्या है इस पर चिंतन करना चाहिए। कहते हैं कि भारत युवा देश है लेकिन यह युवा नहीं बल्कि प्राचीन देश है। लेकिन इस प्रकार के अनेक प्रकार से नेरेटिव सैट किए जाते हैं।
उन्होंने कहा कि भारत राष्ट्र था लेकिन यह राष्ट्र राजनीति या भौगोलिक नहीं बल्कि सांस्कृतिक और सनातन राष्ट्र है। राष्ट्र शब्द का उल्लेख वेदों में बहुत आया है, राष्ट्र की बात आती है तो मतभेद भी है तो राज्य आधारित बताया जाता है लेकिन भारत राष्ट्र राज्य नहीं समाज और सनातन संस्कृति समाज आधारित है।

उन्होंने कहा कि नारी स्वतंत्रता का भारत संवाहक रहा है, महिला भी रानी हो सकती है। सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय के भाव का उद्घोषक रहा है। इसलिए संघर्षों के बाद भी हमारी संस्कृति जीवंत है, हमारी संस्कृति बची हुई है। अब हम आगे कैसे बढ़ सकते हैं पर चिंतन करना जरूरी है। ज्ञान, विज्ञान और ध्यान में प्राचीन भारत अग्रणीय रहा, दुनिया को मानवीय सभ्यता सिखाने वाले भारत के प्राचीन ग्रंथों से आज भी वैज्ञानिक खोज करते हैं। भाषा पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि भारत में बोली जाने वाली सभी राष्ट्र भाषा है। दुनिया में व्यापार व उद्योग पर चर्चा करते हुए कहा जब विश्व अनभिज्ञ था तब दो तिहाई दुनिया के सर्वाधिक बंदरगाह भारत में उस जमाने में थे जब दुनिया कुछ जानती नहीं थी।

उनका कहना था कि हमारी राज्य आधारित सत्ता केन्द्रित नहीं बल्कि हमारे यहां राजा भी थे तो समाज, साधु-संत व आर्थिक सत्ता के साथ विकेन्द्रीकरण रहा। एक ऐसा भी कालखंड आया जब भारत को छिन्न-भिन्न करने का प्रयास किया गया। उन्होंने वर्तमान के संदर्भ में कहा कि अभी लोकसभा में तीन विधेयक रखें गए, जिनमें चार सौ से अधिक गुलामी से जुड़े शब्दों को हटाया गया है। जो हमारा मूल था घर घर उद्योग, आत्मनिर्भर गांव थे। कमजोर के लिए कमजोर ने नहीं बल्कि सक्षम ने संघर्ष किया। आरक्षण व छात्रवृत्ति की व्यवस्था सबसे पहले स्वामी विवेकानन्द ने करवाई थी। इसलिए हमारे यहां कहते हैं कमायेगा वह खिलाएगा।
हम विकसित भारत है जो विज्ञान के क्षेत्र में भारत कभी कमजोर नहीं रहा। उन्होंने पंचप्रण पर चर्चा करते हुए कहा कि हम विरासत के प्रति गर्व करें, गुलामी के चिन्हों से मुक्ति मिले, नागरिक कर्तव्य का पालन हो और देश की एकता और अखंडता के भाव को लेकर चलें। यही वर्तमान की आवश्यकता है।

गोष्ठी में प्रो.कमल कोठारी ने भारतीयता की मूल पहचान है विचारों की स्वतंत्रता, खुलापन व वैज्ञानिक चिन्तन की रही है। इसके प्रति हमारा विरोध नहीं होना चाहिए, विरोध में उसके लिए खड़े होना चाहिए जो राष्ट्रहित में निहित नहीं है। जो नेगेटिव सैट है विरोध उसका होना चाहिए। राजनीति दर्शन में अच्छे को अच्छा कहना तो आज की राजनीति भूल ही गई। जबकि हमारा राजनीति दर्शन तो ऐसा नहीं है । हम भारतीय परंपराओं को छोड़ें नहीं उसे जुड़े, आधुनिकता का विरोध नहीं करना चाहिए, परंपरा नहीं छूटनी चाहिए। आधुनिकता का भारत विरोधी नहीं, यह बंद समाज नहीं है। विरोधाभासी नहीं आभासी बनें। शिक्षक शिव शर्मा ने भी विचार व्यक्त किया। लालचंद सर्वा ने गीत प्रस्तुत किया। अध्यक्षता कर रहे विश्वनाथ गोटेवाला आभार व्यक्त किया। संचालन सुरेश सैनी ने किया।

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