पुस्तक समीक्षा : कुमार अजय की पुस्तक ‘रिंकी टेलर’

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समीक्षा : डॉ. मंजू शर्मा

तौ वौ म्हारौ हेत ही हौ रिंकी!
कुमार अजय की कविताओं का संग्रह ‘रिंकी टेलर’ राजस्थानी की समकालीन कविताओं का बेहतरीन संग्रह है।संग्रह में कुल 96 कविताएं हैं तो पृष्ठ भी 96 ही है। प्रेम और विरह की ये कविताएं किसी लंबी कहानी की तरह आगे बढ़ती हैं। रिंकी टेलर को सम्बोधित करते हुए कवि अपने मन की कोमल भावनाओं को व्यक्त करते चलता है। मैं इसे एक उपालम्भ काव्य कहूंगी…कवि स्मृतियों की गुंजलक में डूबते उतरते गांव के स्कूल, दूकान, बसअड्डे,दफ़्तर में अपने प्रेम को ढूंढता है। एक टीस को हृदय में दबाए रिंकी से सवाल करता है, अधूरे प्रेम और प्रेमिका की उपेक्षा से उपजी पीर की कहानी है रिंकी टेलर।“कै थूं आई चाणचकै
अर म्हे कोई और हुयग्यौ
कै चाणचकै थूं गयी परी,
अबै म्हे कोई और ई हूं”
विरह की ऐसी कथाएं अब दुर्लभ हैं जहां प्रिय की एक झलक पाने के लिए तमाम उम्र इंतज़ार किया जाए। घनानन्द की बात याद आती है “भए अति निठुर, मिटाय पहचानि डारी,
याही दुख हमैं जक लागी हाय हाय है।
तुम तो निपट निरदई, गई भूलि सुधि,
हमैं सूल सेलनि सो क्योहूँन भुलाय है।”
वाक़ई बहुत दिन बाद बिरह को पढ़ा और वह भी अकृतिम और सरस भावनाओं से सराबोर… निष्ठुर प्रियतमा और राह देखता एक प्रेमी।रिंकी टेलर केवल अनुभूतियों का खजाना ही नहीं है अभिव्यक्ति भी अद्भुत है।राजस्थान का परिवेश,माटी की महक,देसी भाषा का सौंदर्य,शब्द चयन सब कुछ बहुत प्रभावी है। एक नज़ीर देखिए-
* “आखड़ ई ज्यावै जुबांन/किणी खतावळी मांय।”
* मरणमाचै पड्यो / एक रोगाळू /जियां देखै /एक नेहचै सूं /नाड़ी बांचतै / डॉक्टर कांनी।”
*कीड़ा-मकोड़ा, कमेड़ी-सुआ / नीं ठाह कांई बणसां / कीं बणसां ई।”
* “चौमासै-सी जूंण मांय / डामर री सड़क थारी प्रीत / तूटनै बैवणी ई ही! “
” कदै ई नीं जांण सकसी प्रीतविहूणी रत्नावली /कै वा जैड़ो समझै, वैड़ो डोफौ नीं हौ तुलसी।”
कवि ने आज के राजस्थानी परिवेश को बहुत खूबसूरती से व्यक्त किया है यहां गांव गुवाड़ है तो है व्हाट्सएप, टीवी, नोटबन्दी,ऑफिस और साथ में समसामयिक जीवन की झलकियां दिखाई देती हैं। राजस्थान की प्रकृति , बिंबों की खूबसूरती और उपमाएं मन मोहती हैं। रिकी टेलर नाम भी खींचता है जो वशिष्ट है, कवि रिंकी को पुकारते हुए हर सांस में प्रेम की दुहाई देता है। कहीं प्रेम में छले जाने की टीस है तो कहीं मिलन की आस बाक़ी है ।कवि कुमार अजय को ढेर सारी बधाइयां। इसी संग्रह से कुछ पंक्तियां

“हाँ, म्हैं गळत ई हूं रिंकी
थारी बड़माणसाई है फगत
जिकौ देख्यो कीं आछौ म्हारै मांय
अर कीन्हौ म्हां सूं किणी छिण हेत ।”

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