कन्हैयालाल सेठिया के काव्य में है गहरी जीवन दृष्टि – डॉ. तारा दूगड़

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साहित्य संवाद श्रृंखला का आयोजन

सुजानगढ़। रचनात्मक संस्था मरुदेश संस्थान, सुजानगढ़ के तत्वावधान में रविवार प्रातः ग्यारह बजे आभासी माध्यम से फेसबुक पर आयोजित ‘कन्हैयालाल सेठिया साहित्य संवाद श्रृंखला’ में बोलते हुए कोलाकाता की विदुषी लेखिका डॉ. तारा दूगड़ ने कहा कि सेठिया के काव्य में गहरी जीवन दृष्टि है। कार्यक्रम के प्रारम्भ में मरुदेश संस्थान के अध्यक्ष डॉ. घनश्याम नाथ कच्छावा ने स्वागत वक्तव्य देते डॉ. तारा दूगड़ का परिचय प्रस्तुत किया और कन्हैयालाल सेठिया की १०१ वीं जयन्ती वर्ष पर आयोजित श्रृंखलाबद्ध आयोजनों के सम्बन्ध में जानकारी दी। ” कुछ बातें सेठिया जी की , कुछ रचनाएं सेठिया जी की ” विषयक इस आयोजन में बतौर मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए हिंदी की प्राध्यापिका डॉ. तारा दूगड़ ने कहा कि हिंदी और राजस्थानी में समान तेजस्विता के साथ सृजन करने वाले प्रज्ञा व प्रतिभा के धनी कन्हैयालाल सेठियाजी अपनी रचनाओं के माध्यम से ज़िंदा है । डॉ. दूगड़ ने कहा कि सेठिया आधुनिक हिंदी साहित्य के उन अग्रणी संवेदनशील साहित्यकारों में परिगणित थे जिन्होंने साहित्य को नई शैली, नई क्षमता, नई जीवन दृष्टि व नव संवेदना की नूतन भाव भूमि प्रदान की। डॉ. तारा दूगड़ ने कहा कि इस भागमभाग के जीवन में साहित्य, संगीत व कविता आदि वे रास्ते हैं जो मनुष्य को मशीन बनने से बचा सकते हैं। उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी के बाद संसार ने एक नयी करवट ली है, ऐसे में कन्हैया लाल सेठिया जैसे महापुरुष के जीवन व कृतित्व का स्मरण, चर्चा व व्याख्यान मानवता का मार्गदर्शन करने में सहायक हैं क्योंकि कविता की नियति है कि वह विध्वंस का विरोध कर नव सृजन का समर्थन करती है और नाश को नकार कर निर्माण को स्वीकृति देती है। कन्हैया लाल सेठिया की रचनाएं इस मानदंड पर खरी उतरती हैं। उनकी एक रचना है–‘आस्था की दीवट पर चिंतन का दीप धर/ रहस्य की मावस को अनुभूति का पूनम कर’। डॉ. तारा दूगड़ का कहना था कि कविता करना सेठिया का श्रम नहीं स्वभाव था इसलिए वे समर्पण के नहीं पुरुषार्थ के कवि थे ,निराशा के नहीं आशा के कवि थे। वे साधक कवि थे ,तभी वे बार बार कहते थे–‘अनुभव का अनुसरण कर, अनुभूत करने तक/असंग सा आचरण कर, अवधूत बनने तक’।अपने एक घंटे के मधुर व प्रभावशाली उद्बोधन में डॉ. तारा दूगड़ ने कहा कि कविता केवल सत्य एवम् दर्शन की ही नहीं अपितु जीवन के समस्त रंगों की संवाहिका है।संस्थान की ओर से तकनीकी सहयोगी मुदित तिवाड़ी ने आभार व्यक्त किया और संस्थान के संयोजक सुमनेश शर्मा, किशोर सैन, सचिव कमलनयन तोषनीवाल व रतनलाल सैन ने स्वागत किया। आयोजन में देश के विभिन्न भागों से शिक्षाविद् डॉ. प्रेमशंकर त्रिपाठी, डॉ .बिट्ठलदास मूँधडा, राजेश दूगड़, सेठिया के पुत्र जयप्रकाश सेठिया, जितेंद्र निर्मोही, कवयित्री प्रीतिमा पुलक, कमल रंगा, डॉ. अनिता जैन, महावीर बजाज, नीरज दइया , ज्योतिकृष्ण वर्मा, शंकर शर्मा, बीएल गिलान, डॉ. पायल वर्मा, संजय बिनानी, डॉ. शालिनी गोयल, डॉ वसुंधरा मिश्रा, पवन दूगड़, संतोष चौधरी, भारती कोठारी, पंकज खेतान, करण बैद, शांति नाहटा, सिद्धार्थ सेठिया, बंशीधर शर्मा, प्रियंका बैद, प्रमोद शर्मा, शम्शुद्दीन स्नेही, डॉ. वीरेंद्र भाटी मंगल, गोपाल मिश्रा, सुशीला चौधरी, स्नेहलता बैद, संजय रस्तोगी , मंजूला चोरड़िया, वर्षा बैद, कविता कोठारी,बन्नेचंद मालू, प्रेमलता बेंगवानी, डॉ. गजेसिंह राजपुरोहित, दीपक कठोतिया, रचना मालू, वसुधा कोठारी, अंजू सिंह,दुर्गा व्यास, डॉ. मधुमंजरी दुबे सहित अनेकानेक गणमान्यजन व साहित्यकार जुड़े।

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