चूरू । राजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुर एवं डॉ.ओपी शर्मा चैरिटेबल ट्रस्ट के संयुक्त तत्वावधान में नगरश्री में ‘समकालीन हिन्दी साहित्य में कुटुम्ब-चिन्तन’ विषय पर जिला साहित्यकार सम्मेलन का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर एवं हिन्दी ग्रंथ अकादमी जयपुर के सदस्य डॉ.सुरेन्द्र डी. सोनी ने की। ट्रस्टी डॉ. सुरेन्द्र, शर्मा, राजेन्द्र मुसाफ़िर, रवीन्द्र शर्मा एवं विनोद शर्मा ने अतिथियों का माल्यार्पण कर अभिनन्दन किया। कृष्णकुमार ग्रोवर ने कहा कि साहित्य अकादमी की सक्रियता से राजगढ, सरदारशहर, रतनगढ, सुजानगढ और तारानगर के साहित्यकार एक जगह विचार-विमर्ष कर रहे हैं। सम्मेलन में डॉ. सुरेन्द्र डी. सोनी ने साहित्य में समकालीनता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि कुटुम्ब का स्वरूप बदल रहा है, जो चिन्तनीय है। साहित्य में भी एकल परिवार को महिमा मण्डित किया जा रहा है, जो ठीक नहीं है। कुछ साहित्यकार स्त्री को विकृत रूप में प्रस्तुत करते हैं, जो गलत है। मुख्य अतिथि श्यामसुन्दर शर्मा ने मैथिलीशरण गुप्त के ग्रंथ ‘साकेत’ के माध्यम से कुटुम्ब की अवधारणा व महत्ता को प्रतिपादित किया। संरक्षक की भूमिका में राजस्थान साहित्य अकादमी के अध्यक्ष डॉ. इन्दुशेखर तत्पुरुष नें कहा कि हमारी संस्कृति में व्यक्ति अपने आप को इतना विस्तृत कर लेता था कि समाज को अलग से नहीं देखता था। उन्होंने कहा कि ये मनुष्य निर्मित ही होते हैं। इन मूल्यों की रक्षा करने के लिए व्यक्ति अपना बलिदान भी कर देता है। उन्होने कहा कि नैतिक षिक्षा ह सामौर ने विषय की महत्ता पर बोलते हुए कहा कि साहित्यिक विचारों के प्रवाह का पहला दायित्व परिवार का है न कि स्कूली षिक्षा का। समापन सत्र के अध्यक्ष भंवरसिंहयुगीन यथार्थ की जानकारी मिलती है वहीं सुधार की संभावना बनती है। ट्रस्टी डॉ. सुरेन्द्र शर्मा व रवीन्द्र शर्मा ने भी कुटुम्ब व्यवस्था और साहित्य में उसके प्रकटीकरण पर विचार व्यक्त किये। पत्रवाचन डॉ. साधनाशी जोशी ‘प्रधान’ और किशोर निर्वाण ने किये। जिले से आए साहित्यकारों डॉ. रामकुमार घोटड़, मनोज चारण, गुरुदास भारती, चन्द्रलेखा शर्मा, मनमीत सोनी, शर्मिला सोनी, स्नेहप्रभा, घनश्याम नाथ कच्छावा आदि ने अपने विचार रखे। ट्रस्ट के सचिव राजेन्द्र मुसाफ़िर ने धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि साहित्य अकादमी के सहयोग और अंचल के साहित्यकारों की अभिरुचि के कारण ज्वलंत विषयों पर विमर्श हुआ जो आज की आवश्यकता है। संचालन रमेश सोनी ने किया।