पवित्र सरिता सम रहा परम पूज्य आचार्य महाप्रज्ञजी का जीवन : आचार्य महाश्रमण

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अहिंसा यात्रा प्रणेता का टमकोर की धरा पर भव्य स्वागत, अपने गुरु की जन्मस्थली पर पधारे युगप्रधान आचार्य महाश्रमण, स्वागत जुलूस संग आचार्यश्री पहुंचे आचार्य महाप्रज्ञ इण्टरनेशनल स्कूल

टमकोर/झुंझुनूं / जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, अहिंसा यात्रा प्रणेता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी रविवार को अपनी धवल सेना संग तेरापंथ धर्मसंघ के दशमाधिशास्ता, प्रज्ञापुरुष, अपने उत्तराधिकार प्रदाता आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के जन्मस्थान गांव टमकोर में पधारे तो मानों पूरा गांव ही स्वागत में उमड़ पड़ा। आचार्य महाप्रज्ञ इण्टरनेशनल स्कूल के विद्यार्थियों के बैण्ड दस्ते की मंगल ध्वनि, श्रद्धाशील ग्रामीणों और श्रद्धालुओं के भव्य स्वागत जुलूस के साथ आचार्यश्री टमकोर गांव स्थित जैन विश्व भारती द्वारा संचालित आचार्य महाप्रज्ञ इण्टरनेशनल स्कूल परिसर में पधारे। लगभग सोलह वर्षों बाद तेरापंथ के आचार्य के आगमन से टमकोर का जन-जन उत्साहित, उल्लसित नजर आ रहा था।रविवार को प्रातः ख्याली गांव स्थित राजकीय माध्यमिक विद्यालय से आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी धवल सेना संग मंगल प्रस्थान किया। आज आचार्यश्री अपने उत्तराधिकार प्रदाता, परम पूज्य गुरुदेव आचार्य महाप्रज्ञजी की जन्मभूमि टमकोर की ओर पधार रहे थे। आचार्यश्री जैसे-जैसे नजदीक पधार रहे थे श्रद्धालुओं का हुजूम बढ़ता जा रहा था। रास्ते में आने वाले अनेक गांव के लोगों को आचार्यश्री के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। सभी पर आशीषवृष्टि करते आचार्यश्री टमकोर गांव के निकट पधारे तो स्वागत में श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ पड़ा। सैंकड़ों की संख्या में उपस्थित गांववासियों, आचार्य महाप्रज्ञ इण्टरनेशनल स्कूल के विद्यार्थियों ने आदि ने आचार्यश्री का भावभीना स्वागत किया। स्कूल के विद्यार्थी बैंड धुनों के साथ-साथ लोगों को कारवां आचार्यश्री के चरणों का अनुगमन करने लगा। इस प्रकार भव्य स्वागत जुलूस के साथ आचार्यश्री टमकोर स्थित आचार्य महाप्रज्ञ इण्टरनेशनल स्कूल परिसर में पधारे। यहां स्कूल प्रबन्धन से जुड़े अधिकारियों व पदाधिकारियों आदि ने आचार्यश्री का भावभीना स्वागत किया।
स्कूल परिसर में बने भव्य पंडाल में विशाल जनमेदिनी उपस्थित थी। आचार्यश्री के स्वागत में टमकोर से संबंधित मुनि नम्रकुमारजी तथा समणी पुण्यप्रज्ञाजी ने गीत का संगान किया। मुनि देवेन्द्रकुमारजी व समणी निर्मलप्रज्ञाजी ने अपनी अभिव्यक्ति दी। आचार्य महाश्रमण प्रवास व्यवस्था समिति-टमकोर के अध्यक्ष श्री अजीत चोरड़िया, आचार्य महाप्रज्ञ इण्टरनेशनल स्कूल के चेयरमेन श्री रणजीतसिंह कोठारी व जैन विश्व भारती के अध्यक्ष श्री मनोज लूणिया ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। मुख्यनियोजिकाजी, मुख्यमुनिश्री व साध्वीवर्याजी ने उपस्थित जनमेदिनी को मंगल उद्बोधन प्रदान किया। उपस्थित आह्लादित जनता को आचार्यश्री ने अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि प्रत्येक आदमी के भीतर कामना होती है। आदमी को ध्यान यह देना चाहिए कि वह कोई ऐसी कामना न धारण कर ले जो उसके लिए विष के समान हो जाए। आदमी को अपनी कामनाओं का विशुद्धिकरण कर ले तो उसका कल्याण हो सकता है। भौतिक सुखों के भोग की कामना, किसी के अनिष्ट की कामना निकृष्ट कोटि की कामना होती है। सबके प्रति कल्याण की कामना, सभी प्राणियों के प्रति मैत्री की कामना उत्कृष्ट प्रकार की कामना होती है। जन्म और मृत्यु सामान्य-सी बात है। जन्म और मृत्यु रूपी किनारों के बीच जो जीवन रूपी सरिता प्रवाहित होती है, वह निर्मलता और पवित्रता के साथ प्रवाहित है तो मानों वह जीवन धन्य हो जाता है।परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी का जीवन पवित्र और निर्मल सरिता के समान था। जिनके जन्म का स्थान बनकर यह गांव भी गरिमाभूषित बन गया। परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी हमारे धर्मसंघ के दशमाधिशास्ता थे। हमारे धर्मसंघ का मानों सौभाग्य है जो ऐसे महापुरुष प्राप्त हुए। उनका जन्म टमकोर और दीक्षा सरदारशहर में हुआ। आचार्य कालूगणी से दीक्षा ग्रहण करने के बाद कुछ समय उनकी सन्निधि में रहे और उसके उपरान्त गणाधिपति आचार्यश्री तुलसी के साथ प्रलम्बकाल तक रहे। दीक्षा के बाद उनके विद्या का जो विकास हुआ, वह विशिष्ट था। आचार्य महाप्रज्ञजी हमारे धर्मसंघ एकमात्र ऐसे आचार्य थे जो अपने आचार्य की विद्यमानता में ही तेरापंथ के आचार्य बने। उन्होंने जैन आगम के संपादन का जो कार्य किया वह जैन जगत् पर मानों उपकार है। प्रेक्षाध्यान, जीवन-विज्ञान उनके अवदान थे। जो पूरे विश्व जगत को नया आलोक प्रदान कर रहा है। उनके भीतर दया और करुणा का विशेष भाव था। वे एक महान दार्शनिक थे। ऐसे महापुरुष के जन्मस्थान में हमारा आना हुआ है। अपनी अहिंसा यात्रा के दौरान गुरुदेव की जन्मभूमि में आना हो गया, यह अच्छा हुआ। हमारे साथ मुख्यमुनि, मुख्यनियोजिकाजी व साध्वीवर्याजी हैं। संसारपक्ष में साध्वीप्रमुखाजी का यहां ननिहाल है और संसारपक्ष में मेरा भी पड़ननिहाल यहां है। आचार्यश्री साध्वीप्रमुखाजी के चित्त समाधि और स्वस्थता के लिए ‘आरोग्ग बोहिलाभं.. तथा ‘चन्देसु निम्मलयरा…’ मंत्र का जप कराया। आचार्य महाप्रज्ञजी के महाप्रयाण के बाद पहली बार हमारा आना हुआ है। जैन विश्व भारती द्वारा संचालित इस विद्यालय में हमारा आना हुआ है। एक अच्छे स्तर का विद्यालय टमकोर में संचालित हो रहा है। यहां के विद्यार्थियों में शिक्षा के साथ-साथ अच्छे संस्कार भी पुष्ट होते रहें।

मुझे आपके रूप में भगवान के दर्शन हो गए: झुंझुनू सांसद नरेन्द्र खिंचड़

कार्यक्रम में विशेष रूप से उपस्थित झुंझुनू के सांसद श्री नरेन्द्र कुमार खिंचड़ ने कहा कि मैं समस्त जिलावासियों की ओर से महातपस्वी, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी का हार्दिक-स्वागत एवं अभिनंदन करता हूं। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की जन्मभूमि की पावन धरा आपके पदार्पण से मानों स्वर्ग बन गई है। मुझे आपश्री के दर्शन कर ऐसा लगा कि मैंने साक्षात् भगवान के दर्शन कर लिए। मेरा आपसे अनुरोध है कि आपश्री के चरण बार-बार हमारी धरती पड़ते रहें और आपश्री का निरंतर आशीर्वाद हम सभी को प्राप्त होता रहे। इसके उपरान्त मुमुक्षु नुपूर, प्रतापसिंह चोरड़िया, भीखमचंद नखत, सुशील चोरड़िया, केशरीचंद चोरड़िया तथा स्कूल के प्रिंसिपल लोकेश तिवारी ने आचार्यश्री के स्वागत में अपनी भावाभिव्यक्ति दी। स्कूल की छात्रा मंजू ने अंग्रेजी भाषा में अपनी अभिव्यक्ति दी। तेरापंथ महिला मण्डल तथा तेरापंथ युवक परिषद-टमकोर के सदस्यों ने स्वागत गीत का संगान किया। आचार्य महाप्रज्ञ इण्टरनेशनल स्कूल के विद्यार्थियों ने दो कार्यक्रमों की भावपूर्ण प्रस्तुति दी। स्थानीय तेरापंथ महिला मण्डल की सदस्याओं द्वारा संकल्पों का उपहार अर्पित कर ‘नानेरो रे दही रोटिया’ पुस्तक श्रीचरणों में लोकार्पित की। डॉ. जुल्फीकार ने भी अपनी पुस्तक भी पूज्यचरणों में लोकार्पित की। आचार्यश्री ने दोनों पुस्तकों के संदर्भ में मंगलकामनाएं प्रदान कीं। लगभग चार बजे के आसपास आचार्यश्री ने स्कूल परिसर से टमकोर गांव की प्रस्थान किया। बुलंद जयघोष से गुंजायमान वातावरण के बीच आचार्यश्री टमकोर गांव स्थित तेरापंथ धर्मसंघ के दसमाधिशास्ता आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की जन्मस्थली में पधारे। वहां आचार्यश्री ने कुछ समय ध्यान करने के उपरान्त उपस्थित जनसमूह को मंगल संबोधन भी प्रदान किया। तदपुरान्त आचार्यश्री कुल लगभग दो किलोमीटर का विहार कर रात्रिकालीन प्रवास हेतु कोठारी परिवार के निवास स्थान में पधारे।

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