उद्देश्यपरक और प्रेरणादायी लेखन होना चाहिए – उमेश चैरसिया

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चूरू।पुनीत सोनी।

अखिल भारतीय साहित्य परिषद्, राजस्थान द्वारा गुरुवार, 3 जून को ‘मेरी साहित्य-यात्रा’ आॅनलाइन कार्यक्रम आयोजित हुआ। यह कार्यक्रम प्रसिद्ध रंगकर्मी व साहित्यकार उमेष कुमार चैरसिया पर केन्द्रित था। जयपुर प्रांत के उपाध्यक्ष राजेन्द्र शर्मा ‘मुसाफ़िर’ ने स्वागत उद्बोधन और सरस्वती वंदना से कार्यक्रम का आरम्भ किया। राष्ट्रीय महामंत्री ऋषिकुमार मिश्र ने कार्यक्रम की रूपरेखा पर प्रकाष डालते हुए कहा कि यह आनलाइन कार्यक्रम सभी प्रदेषों द्वारा किया जा रहा है। इसका उद्देष्य सृजनधर्मी साहित्यकारों के सृजन से रूबरू होना और नवोदित को सक्रिय व प्रेरित करना है। अपनी साहित्य यात्रा की शुरूआत के बारे में चैरसिया ने बताया कि वे पांचवी कक्षा में थे, तब उन्होंने पहली बार काव्यपाठ किया था। स्कूल से महाविद्यालय तक आते-आते साहित्य सृजन ने गति पकड़ी। शुरू से ही उनका ज्यादा रुझान नाटकों की तरफ रहा। 34 वर्षों से अनवरत साहित्य-सृजन करने वाले चैरसिया ने कहा कि फिल्मी दुनिया के निर्देषक मेहबूब के सहायक रहे बेनी और श्याम कुलकर्णी नाटक के क्षेत्र में उनके गुरु रहे हैं। साहित्य-सृजन में उन्हें हमेषा बद्रीप्रसाद पंचोली का मार्गदर्षन मिला। गीत, गज़ल़, कविता, लघुकथा, सामयिक फीचर, आलेख, स्तंभ, बाल साहित्य, आलोचना और समीक्षा, निर्देषन सभी विधाओं में कार्य करने वाले चैरसिया ने कहा कि अपने को प्रकाषित करने की जल्दबाजी, आज के नवोदित लेखकों की कमी है। साहित्य-सृजन धैर्य के साथ की जाने वाली एक तपस्या है। संवाद के दौरान उन्होंने बताया कि उनके लिखे अधिकांष नाटकों का पहले मंचन हुआ, उसके बाद प्रकाषन। उन्होंने नाटक की प्राचीन परम्परा के संदर्भो के साथ इस विधा की भी बारीकियां बताई। नुक्कड़ नाटकों सम्बन्धी एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि इससे कम संसाधनों और कम समय में अच्छे संदेष दे सकते हैं, जो आज की सबसे अच्छी विधा है। चैरसिया के नाटकों का मंचन देष भर के स्कूल, काॅलेजों के अलावा ओपन थियेटर में होता रहा है। उनको गौरवपूर्ण ऐतिहासिक व पौराणिक चरित्रों और महापुरुषों के जीवन प्रसंगों ने प्रभावित किया। इसी कारण उनके नाटक, लघुकथा या अन्य बाल साहित्य सुभाषचंद्र बोस, कबीर, रवीन्द्रनाथ टैगोर, विवेकानन्द एवं वीर यौद्धाओं पर केन्द्रित है। चैरसिया छः लघु फिल्मों का लेखन, निर्दषन व निर्माण कर चुके हैं। अब तक 82 हिन्दी व 27 राजस्थानी भाषा के पूर्णकालिक, लघु व नुक्कड़ नाटकों का लेखन कर चुके हैं जिनमें अधिकांष बाल-नाटक हैं। एनसीईआरटी, राजस्थान संगीत नाटक अकादमी, राजस्थान साहित्य अकादमी जैसी संस्थाओं में लगातार योगदान कर रहे हैं। आपको ‘षंभुदयाल सक्सैना बाल साहित्यकार पुरस्कार, ‘देवीलाल सामर पुरस्कार, अखिल भारतीय युवा पुरस्कार सहित अनेक सम्मान दिये जा चुके हैं। संवाद कार्यक्रम में लगभग 70 प्रतिभागी मौजूद रहे। आखिर में साहित्यिक सवाल-जवाब सत्र भी हुआ। आनलाइन कार्यक्रम का प्रभावषाली संचालन लोहिया महाविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. सुरेन्द्र डी. सोनी ने किया। प्रदेषाध्यक्ष डॉ. अन्नाराम शर्मा, प्रदेष संगठन मंत्री विपिनचंद्र पाठक, जयपुर प्रदेषाध्यक्ष ओमप्रकाष भार्गव ने मार्गदर्षन प्रदान किया। केषव शर्मा, विजय नागपाल, डाॅ. नरेन्द्र मिश्र, संगीता सेठी, आदि ने ऐसे आयोजन लगातार करने पर बल दिया।

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