यह समय बच्चों के दोस्त बनकर जीने का है, आशावादी रहें और मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य का ख्याल रखें

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‘आशा रखें- वो सुबह कभी तो आएगी’
 कोरोना वायरस के बदलते व्यवहार और परिदृश्य का जनमानस के मानसिक स्वास्थ्य पर विषय पर ऑनलाइन सत्र का आयोजन

6 मई को अलवर कलेक्टर पहाडिया और ह्रदय विशेषज्ञ गोयल करेंगे बात 

अलवर।कोरोना वायरस के बदलते व्यवहार और परिदृश्य का जनमानस के मानसिक स्वास्थ्य पर क्या असर हो रहा है। इस विषय पर बुधवार को ऑनलाइन सत्र में चर्चा की गई। रेड अलर्ट पखवाड़ा अवधि में कम्युनिटी पुलिसिंग के तहत अलवर पुलिस, यूनिसेफ राजस्थान, राज्य बाल संरक्षण आयोग, सरदार पटेल पुलिस यूनिवर्सिटी, राजीविका-ग्रामीण विकास विभाग, जिला प्रशासन अलवर, एलएआरसी और संप्रीति संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित ऑनलाइन श्रंखला ‘पूछें डॉक्टर से’ के तहत बुधवार को बनस्थली विद्यापीठ की मनोविज्ञान विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ.संतोष मीणा और यूनिसेफ राजस्थान की कम्यूनिकेशन और डवलपमेंट विभाग की मंजरी पंत ने समाज और कोरोना के कारण उनके मानसिक स्वास्थ्य पर होने वाले प्रभाव पर व्यापक रूप से चर्चा की। सैशन के अंत में अलवर एसपी तेजस्विनी गौतम ने सभी आमंत्रित सदस्यों को आभार व्यक्त किया।

समुदाय में दु:ख है, तनाव है लेकिन यह नई सुबह के संकेत हैं- मंजरी पंत

यूनिसेफ की मंजरी पंत ने कहा कि कोरोना काल में समाज में दु:ख और तनाव बढ़ रहा है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और अपने अपने घरों में बंद हो गए हैं इसलिए लोगों में नाराजगी बढ़ रही है। पंत ने कहा कि ऐसे में समय में महिलाओं और बच्चों के साथ हिंसा भी बढ़ी है। उन्होंने कहा कि इस काल में सभी के मानसिक स्वास्थ्य पर हो रहा है इसलिए हमें चाहिए की हम अपनी आदतों को देखें क उनमें क्या परिवर्तन आ रहा है इस ओर ध्यान दें। उन्होंने कहा यह वह समय है जब बच्चों ने बीमारी और मृत्यु को बेहद करीब से देखा है। ऐसे में बच्चों में जो डर बैठा है उसे दूर करने का प्रयास किया जाए। मंजरी पंत ने कहा कि अब यह एक ऐसा समय है जब माता-पिता को अपने बचपन में लौटते हुए बच्चों के साथ दोस्ताना व्यवहार करना होगा। पंत ने बेहद सरल अंदाज में कहा कि हमें चिडिय़ा उड, लूडो और अंतराक्षरी जैसे खेलो को दुबारा यादों से निकाल हकीकत में बदलना होगा। उन्होंने कहा कि हम लोगों को अगर कोराना से लडऩा है तो हमें आपसी रिश्तों को बांधना होगा और कोराना से लड़ाई मिलकर ही लड़ी जा सकती है। शहरी और ग्रामीण स्तर पर कोरोना के कारण रोजमर्रा का जीवन जरूर बदला है लेकिन इस समस्या से निजात पाना भी समुदाय के हाथ में ही है क्योंकि लगातार 14 महीने से हम कोरोना की गाइडलाइन सुन सुनकर परेशान हो चुके हैं और हमने अपना स्व: अनुशासन खो दिया है। ऐसे में स्वयं को अनुशासन के जरिए ही पूरा समुदाय कोरोना से जंग जीत सकता है

अपनी जीवटता को जिन्दा रखें बस यही जीत का मूल मंत्र: डॉ.संतोष मीणा

बनस्थली विद्यापीठ की मनोविज्ञान विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. संतोष मीणा ने कहा कि कोरोना काल में व्यक्तियों में डिप्रेशन, एंजायटी,डर और निराशा बढ़ रही है। यह सब इसलिए हो रहा है कि हम पूरे समय नकारात्क विचारों, खबरों और माहौल से घिरे हैं। हमें यह समझ में नहीं आ रहा कि हमें क्या करना है। हमारी आदतें बदल रहीं हैं। डॉ.मीणा का कहना था कि यह सही है कि कोरोना का असर हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर हुआ है लेकिन हम इसे दूर कर सकते हैं। हम अपनी बदलती आदतों से घबराएं नहीं, हमें चाहिए की हम नकारात्मक खबरों, विचारों और माहौल से दूर रहें क्योंकि कोरोना काल स्थायी नहीं है। कोरोना एक दिन चला जाएगा लेकिन अपनी बदलती आदतों और व्यवहार के कारण हम अपनों और कहीं अपने आप से दूर नहीं हो जाएं इसका खास ख्याल रखना होगा। डॉ.मीणा ने कहा कि मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखना उतना ही जरूरी है जितना की हम अपने शारीरिक स्वास्थ्य का रखते हैं। डॉ. संतोष मीणा ने कहा कि इस कोरोना काल में हमें आपसी संवाद की जरूरत है। हम अपने नाते और रिश्तेदारों के साथ सोशल मीडिया और फोन के जरिए संपर्क में रहें और वो सारे काम करें जिसमें हमारी रूचि हो। उन्होंने कहा कि बच्चों, महिलाओं, युवाओं सहित सभी के मानसिक स्वास्थ्य पर इस कोरोना काल में असर पड़ा है इसे निजात पाने का सबसे बेहतर यही उपाय है कि हम अपनी आशा कभी नहीं छोड़े कि कोरोना के बादल छंट जाएंगे और वो सुबह कभी तो आएगी।

अलवर कलेक्टर पहाडिया और ह्रदय विशेषज्ञ गोयल करेंगे आज बात :

डॉक्टर से पूछें ऑनलाइन सत्र में गुरुवार को अलवर जिला कलेक्टर नन्नूमल पहाडिय़ा और कोटा हार्ट इंस्टीट्यूट, कोटा के सीनियर कॉर्डियोलॉजिस्ट डॉ.साकेत गोयल ऑनलाइन शाम 6 से 7 के बीच जनता से संवाद स्थापित करेंगे और उनकी शंकाओं का समाधान करेंगे।

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