पुरी पीठाधीश्वर जी के बयान से भ्रमित सनातनधर्मी – अपने गुरु स्वामी करपात्री जी के निर्णय पर जताया संदेह ।

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पुरी पीठाधीश्वर स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती जी द्वारा अपनी जोशीमठ यात्रा के दौरान ज्योतिर्मठ शंकराचार्य के विषय में दिया गया व्यक्तव्य जनमानस को भ्रमित करने के साथ ही साथ धार्मिक भावनाओं को आहत भी कर रहा हैं। सोशल मीडिया संसधनों पर चल रही आडियो क्लिप में पुरी पीठाधीश्वर ज्योतिषपीठ पर अपनी बात कहते सुनाई दे रहे हैं, जिसको सुनकर वर्तमान पीठाधीश्वर के प्रति उनका रुख एवं उनके स्वयं के गुरु स्वामी करपात्री जी के निर्णयों पर संदेह जताना आमजनमानस को समझ नहीं आ रहा हैं। इस आडिओ को सुनकर जोशीमठ के वृहत्त धर्मक्षेत्र के लोगो के साथ साथ समस्त सनातन धर्मियों में असंतोष हैं ।
उक्त आडिओ के आधार पर कुछ स्वाभाविक प्रश्न जोकि समस्त सनातनधर्मियों में व्यापक रूप से उठ रहें हैं ।

1. अपने व्यक्तव्य में जिस ग्रंथ का वे उल्लेख कर रहे हैं “ श्री शिववतार भग्वत्पाद शंकराचार्य “ उसमें जो चतुष्पीठ के आचार्यों की परंपरा दी गई हैं, उसमें शारदापीठ, द्वारका एवं ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्यों के रूप में कृष्णबोधाश्रम जी के बाद स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती जी का नाम दिया हुआ हैं। जब उनका नाम उनके संदर्भ्रित ग्रंथों में उल्लेखित हैं तो फिर संदेह किसलिए ?
2. जब सन 1953 में कृष्णबोधाश्रम जी का अभिषेक उनके गुरु स्वामी करपात्री जी महाराज एवं तत्कालीन द्वारका के शंकराचार्य एवं विद्वत्समाज ने किया था तो वह अभिषेक वैध था या अवैध ? अगर वैध था शांतानन्द, विष्णुदेवानंद और वासुदेवानंद की तो चर्चा ही नहीं उठनी चाहिए थी मगर जोशीमठ में पुरी पीठाधीश्वर अपने व्यक्तव्य में शांतानन्द, विष्णुदेवानंद आदि की चर्चा ब्रह्मानन्द जी के शिष्य के रूप में कर रहें हैं तो इन विचारों को क्या कहा जाएँ करपात्री जी के निर्णय पर संदेह अथवा इसपर वर्तमान में आपकी निजी असहमति ?
3. आपने अपने व्यक्तव्य में कंही भी ज्योतिषपीठ की शंकराचार्य परम्परा में कृष्णबोधाश्रम जी का नाम नही लिया, आपने तो यह माना है कि ब्रह्मानंद जी के बाद दो धाराएं चल पडी। आपने अपने गुरू स्वामी करपात्री जी के द्वारा कृष्णबोधाश्रम जी के रूप में चलाई गई धारा को शांतानंद की धारा के समान मानते हुए उभयसम्मत समाधान की बात कही है। इसका अर्थ तो यह हुआ की ब्रह्मानंद जी के बाद शांतानंद की हैसियत को आप स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी से बराबरी की श्रेणी दे रहे है? अगर यही उभयपक्षीय संदेह आपके मन में था तो कैसे पूर्व के चतुष्पीठ सम्मेलन में आप दौनों पीठ पर स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी का समर्थन करते आ रहे थे? आपको चार पीठ में चार की संख्या का कोरम पूरा करना है या योग्यता प्रधान है?

4. चर्चा में ही वर्तमान जोशीमठ प्रवास के दौरान आपने ज्यार्तिमठ के सन्यासियों के बार — बार आग्रह करने पर भी मठ में जाना उचित नही समझा। बतौर शंकराचार्य आपने तोटकाचार्य गुफा या शंकराचार्य ज्योति स्थल जाना भी उचित नही समझा तो यह जोशीमठ यात्रा आपने पूर्व निर्धारित विचार सहित विवादों को उठाने के लिए की है या आचार्यों को सार्वजनिक रूप से अपमानित करने हेतू की?

5. स्वयं स्वामी करपात्री जी ने शांतानंद बनाम कृष्णबोधाश्रम वाले न्यायलीय वाद को कृष्णबोधाश्रम जी के ब्रह्मलीन होने के बाद कुछ दिनों तक देखा फिर बाद में उन्होने स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी को ज्योतिषपीठ का शंकराचार्य बनाया और न्यायलीय विवाद को सुलझाने को कहा तो कैसे आप अपने गुरू के द्वारा चलाई गई धारा को शांतानंद से बराबरी का दर्जा दे रहे है? आपको यह पता होना चाहिए कि शांतानंद और वसीयत में लिखे नामों का निषेद ब्रह्मानंद सरस्वती जी के शिष्य के रूप में नही अपितु उनकी अयोग्यता को लेकर किया गया था जिनको संस्कृत पढनी भी नही आती थी समझना तो दूर की बात है। उनकी तुलना आप स्वामी स्वरूपानंद सरस्वतीजी या कृष्णबोधाश्रम जी जैसे मनिषियों से करके उनका सार्वजनिक अपमान करते हुए अनाधिकार चेष्टा कर रहे है। ज्ञात रहें ही हाल ही माननीय न्यायालय द्वारा ज्योतिषपीठ के मामले में स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती जी के अलावा उक्त अन्य सभी को संत की श्रेणी योग्य भी नहीं माना था ।

6. आप प्रश्न उठा रहे है कि दो पीठों में एक नही रह सकता, इस पर आपसे भी प्रश्न किया जा सकता है कि सरकारी कागजो में पुरी शंकराचार्य के रूप में आपका नाम निश्चलानंद सरस्वती देवतीर्थ लिखा है तो एक ही व्यक्ति क्या सरस्वती और देवतीर्थ दौनों हो सकता है? क्या एक ही व्यक्ति मिश्र और पांडे दौनों हो सकता है?

7. आपने यह स्पष्ट नही किया कि स्वामी स्वरूपानंद जी ने स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती जी से संयास दीक्षा एवं दंड ग्रहण किया था। ब्रहमानंद जी की वसीयत में जो नाम दिए गए थे वे सभी लोग स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी से बहुत बाद में दीक्षा लिए थे तो वरिष्ठता का क्रम आप मानते है या नही?

8. स्वामी करपात्री जी से स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी ने बीस साल तक चातुर्मास्य में अध्यन किया था इसी कारण कृष्णबोधाश्रम जी के बाद उनका ज्योतिषपीठ का शंकराचार्य अभिषेक तीनों शंकराचार्यों जिनमें आपके पूर्वाचार्य सहित स्वामी करपात्री जी, धर्मसंघ, भारत धर्म महामंडल, काशीविद्वत्परिषद ने किया किया था। आप बताएं शांतानंदी धारा के लोगों का अभिषेक किसने किया था? कैसे इस धारा को आप बराबरी का मान रहे है? जैसे स्वामी नारदानंद के शिष्य होते हुए भी आप उनको अपना गुरू नही मानते इसी तरह स्वामी करपात्री जी के कार्यों को झूठलाकार उनको अमान्य करने की अनाधिकार चेष्टा भी आप कर रहे है। आपने यह मिथ्या बात कही है कि पद्मपाद ने तोटकाचार्य को ज्योतिषपीठ का शंकराचार्य बनाया, नरसिंह मंदिर से पद्मपाद का तुक जोडना उचित नही स्वयं शंकराचार्य नरसिंह भगत थे अनेक भावपूर्ण स्त्रोत उन्होने नरसिंह स्तुति में लिखे है और जोशीमठ में नरसिंह मंदिर की स्थापना की है आप ज्योतिषमठ के प्रशांत वातावरण को उद्वेलित करने की चेष्टा कर रहे है। सन् 1943 में भारतधर्ममहामंडल ने करपात्री जी से कोई आग्रह ज्योतिषपीठ पर आने का नही किया था। उस समय करपात्री जी सार्वजनिक ही नही हुए थे।
9. जब सर्ववरिष्ठ स्वामी स्वरूपानंद जी स्वयं ज्योतिषपीठ पर है तो उनकी जगह लेने आपकी दृष्टि में कौन है? उसका नाम प्रकाशित करें। अगर आपको हटाना ही है तो उनसे भी श्रेष्ठ व्यक्ति होना चाहिए ।

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