खेतड़ी राजा अजीत सिंह थे, एक सच्चे जनसेवक

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विश्व में भारत की आवाज को किया बुलंद

झुंझुनूं । अजीत जांगिड़
खेतड़ी इतिहास में राजा अजीत सिंह विशेष स्थान रखते हैं, उनका जन्म आज से 164 साल पहले 16 अक्टूबर 1861 ई. को झुंझुनूं जिले के अलसीसर में हुआ था। उनके पिता का नाम छान्तु सिंह और माता उदावत थी। छह वर्ष की उम्र होते-होते अजीत सिंह के ऊपर से माता-पिता का साया उठ गया। स्वामी विवेकानंद व राजा अजीत सिंह के संबंधों पर रिसर्च कर चुके डॉ. जुल्फिकार भीमसर के अनुसार खेतड़ी नरेश फतेह सिंह भी निसंतान थे। मृत्यु पूर्व अलसीसर प्रवास के दौरान उन्होंने अजीत सिंह को देखा और अपना दत्तक पुत्र मान लिया था। अजीत सिंह 1870 ई. में खेतड़ी के राजा बने और 1876 ई. में 15 वर्ष की आयु में उन्होंने रानी चम्पावत से शादी की। उनके एक बेटा जयसिंह और दो बेटियां सूर्य कुमारी व चंद्र कुमारी थी। खेतड़ी नरेश अजीत सिंह राजस्थानी राजाओं और प्रजाजनों में बड़े लोकप्रिय शासक थे।

राजा अजीत सिंह एक सच्चे जनसेवक

राजा अजीत सिंह का काल खेतड़ी इतिहास का स्वर्णकाल रहा था। अजीत सिंह योग्य प्रशासक, विद्वान, कवि एवं कला के उत्तम संरक्षक भी थे। उन्होंने खेतड़ी में राजकीय अस्पताल, जुबली रोड, निशक्त जनों के लिए निशुल्क रहने की व्यवस्था, डकैतियां एवं चोरी आदि घटनाएं रोकने के लिए आवश्यक स्थानों पर पुलिस चौकी और थाने स्थापित किए तथा पूर्व स्थापित थाने-चौकियों में यथेष्ट पुलिस कर्मचारी और घुड़सवार उपलब्ध करवाए। कई बांधों और झीलों का निर्माण कार्य तथा जानवरों के लिए ठिकाने व चारे की व्यवस्था इत्यादि अनेक कार्य एक सच्चे जनसेवक के रुप में खेतड़ी राजा अजीत सिंह ने किए थे।

विश्व में भारत की आवाज को किया बुलंद

स्वामी विवेकानंद को 132 साल पहले शिकागो विश्वधर्म सम्मेलन में भेजने वाले राजा अजीत सिंह ही थे। शोधकर्ता डॉ. जुल्फिकार ने बताया कि दोनों गुरु-शिष्य ने मिलकर विश्वभर में भारत की आवाज को बुलंद किया। इससे पहले अमेरिका में भारत की छवि खराब थी। तब स्वामीजी ने उन्हें बताया कि वास्तव में भारत क्या है, उनके मुख से प्राचीन ग्रंथों की नई व्याख्या सुनकर वे चकित रह गए तब अमेरिका में ऐसा कोई अखबार ही नहीं था जिसके प्रथम पृष्ठ पर स्वामीजी की फोटो और उनका परिचय प्रकाशित न हुआ हो। अपने मित्र राजा अजीत सिंह के बारे में स्वामी विवेकानंद ने स्वयं कहा था कि— भारतवर्ष की उन्नति के लिए जो कुछ मैंने थोड़ा बहुत किया है, वह में नहीं कर पाता यदि राजा अजीत सिंह मुझे नहीं मिलते।

संन्यासी और राजा में समानता

राजा अजीत सिंह और स्वामी विवेकानंद दोनों गुरु-शिष्य में एक समानता थी। राजा अजीत सिंह की आयु अधिक नहीं रहीं। 18 जनवरी 1901ई. को उत्तरप्रदेश के सिकंदरा में उनका देहांत हो गया। यानी स्वामी विवेकानंद के जन्मदिन 12 जनवरी से ठीक छह दिन बाद अपने शिष्य की मृत्यु से स्वामीजी को बहुत दुख हुआ और अगले ही साल वो भी चार जुलाई 1902 ई. को ब्रह्मलीन हो गए। स्वामीजी ने स्वीकार किया कि उनकी सफलता में राजा अजीत सिंह का अत्यधिक योगदान था। जब भी स्वामीजी की कीर्ति और यश का जिक्र किया जाएगा। तब राजा अजीत सिंह का नाम अवश्य लिया जाएगा।

टॉपिक एक्सपर्ट

राजा अजीत सिंह एक प्रकृत राजर्षि थे। उन्होंने खेतड़ी पर 31साल तक राज किया वे बहुत शिक्षित, शिक्षाप्रचारक, न्यायपरायण, प्रजाहितसाधक पुरुषरत्न थे। वे नम्रता, नितिमत्ता, शिष्टाचार, क्षमा- शीलता, अतिथि-सत्कार-पारायणता में भी अद्वितीय थे।
– डॉ. जुल्फिकार, भीमसर, विवेकानंद शोधकर्ता और लेखक

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