बस के चालक महावीरप्रसाद को फिर से थमा दी बस, बोला— एक आंख से धुंधलापन दिखता है, रिटायरमेंट का डेढ साल बचा, फिर भी जबरदस्ती चलवा रहे है रोज 400 किमी बस

झुंझुनूं । अजीत जांगिड़
जिला मुख्यालय पर शुक्रवार शाम को रोडवेज बस डिपो में बुजूर्ग पीडब्लूडी के रिटायर्ड बाबू की बस के नीचे आने से मौत हो गई थी। जिस बस से रिटायर्ड बाबू झंडूराम भार्गव की मौत हुई। वो बस झुंझुनूं डिपो की थी। बस को नूनियां गोठड़ा निवासी महावीर प्रसाद चला रहा था। शुक्रवार शाम को हुए हादसे के बाद भी शनिवार सुबह ही महावीर प्रसाद को फिर से बस थमा दी गई। जबकि महावीर प्रसाद का रिटायरमेंट का करीब डेढ साल ही बचा है। उसकी एक आंख में चोट लगने के कारण उसे धुंधला भी दिखता है। बावजूद इसके जबरदस्ती महावीर प्रसाद से रोडवेज प्रशासन 400 किलोमीटर रोज बस चलवा रहा है। महावीर प्रसाद ने बताया कि उनका नाम सीनियर सूची में आ गया है। वे कई बार डिपो मैनेजर और ट्रेफिक मैनेजर से निवेदन कर चुके है कि उन्हें एक आंख से धुंधला दिखता है और रिटायरमेंट का भी डेढ ही साल है। बावजूद उनसे रोजाना 14 से 15 घंटे तक 400 किलोमीटर बस चलवाई जा रही है। उन्होंने बताया कि जो नए युवा ड्राइवर है। उनसे भी इतना काम नहीं करवाया जा रहा। जितनी बसें महावीर प्रसाद जैसे रिटायरमेंट के नजदीक वाले सीनियरटी लिस्ट में शामिल ड्राइवरों से चलवाई जा रही है। उतनी बसें तो एजेंसी वाले ड्राइवर भी नहीं चला रहे है। उन्होंने कहा कि इस बारे में कई बार पीड़ा बताई तो धमकाया जाता है और कहा कि जाती है कि हमारी नियत नहीं है। लेकिन हमने 33 साल से बसें चलाई है। बात नियत की नहीं है। बल्कि परिस्थितियों की है। शुक्रवार को हुए हादसे पर खुद चालक महावीरप्रसाद भी शॉक्ड् है। उन्होंने कहा कि उनकी बस दो नंबर गियर में थी। जो हादसा हुआ। उसके लिए उन्हें भी शॉक लगा है। उनके लिए यह तो चुल्लू भर पानी में डूबने वाली बात हुई कि दो नंबर गियर में भी हादसा हो गया। बहरहाल, सवाल यह है कि सिर्फ रिटायरमेंट के नजदीक ड्राइवरों से ही नहीं, बल्कि जो मेडिकल भी पूरी तरह फिट नहीं है। जिन्हें आंख से धुंधला दिखता है या फिर कम दिखता है। ऐसे ड्राइवरों के भरोसे यात्रियों को बसों से यात्रा करवाई जा रही है। जो कभी भी बड़े हादसे को न्यौता देने जैसा है। शुक्रवार को हादसे के बाद भी डिपो ने सबक ना लेते हुए कुछ घंटों बाद ही उसी ड्राइवर को बस का स्टियरिंग थमा दिया। जो चर्चा का विषय है। इस मामले में हमने डिपो मैनेजर और ट्रेफिक मेनेजर से भी बात करने की कोशिश की। लेकिन दोनों ही ना ही सीट पर मिले और आफिस आने पर ही बात करने को कहा।











