पं. कुंज विहारी शर्मा स्मृति साहित्य गोष्ठी की 177वीं कड़ी में महिला सृजन को समर्पित ‘काव्य कलश’, श्रोताओं को भावविभोर किया
चूरू। लोक संस्कृति शोध संस्थान नगर श्री में रविवार को हुई साहित्य गोष्ठी में उपस्थित श्रोता गदगद हो गये। सचिव श्यामसुन्दर शर्मा ने बताया कि हर माह के अंतिम रविवार को होने वाली पं. कुंज विहारी शर्मा स्मृति साहित्य गोष्ठी की 177वीं कड़ी काव्य कलश में महिला कवयित्री का काव्य पाठ हुआ। नवरात्र के अवसर पर यह काव्य गोष्ठी महिला साहित्यकार पर ही केन्द्रित थी। गोष्ठी चूरू बालिका महाविद्यालय की प्राचार्य आशा कोठारी की अध्यक्षता व साहित्यकार समाज सेवी विजयलक्ष्मी पारीक के विशिष्ट आतिथ्य में सम्पन्न हुई। श्री डूंगरगढ़ की कवयित्री भवगती पारीक ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत कर गोष्ठी का शुभारंभ किया। गीता रावत गाफिल ने-पत्नी होना आसान नहीं होता…, प्यार भरे शब्दां में बहलती है औरत…, उनके इतवार इति…, रितु निराणिया ने बराबर क्यों…, पूनम शर्मा ने होता सदा मन चंचल घोर…, हर बात पर कोई कहानी याद आती है…, झुंझुनूं की कवयित्री ने मुक्तक व कविता-हमें अभिमान है रिस्तां की कमाई पर…, अकेलेपन की पीड़ा को दर्शाती-सहारा क्या सहारे की आस अब तो नहीं दिखती…, राजस्थानी गीत पड़गी भींत भरोसे की…, बाड़ खेत नै खा रही…., माया वे लड़के जो चुन सकते जंग…, स्नेहलता शर्मा ने अपनी अंबर में छाप फैलाते… मेरे शहर में क्या खूब जश्न-ए-दावत है… दीए तो नहीं दिल जल रहे हैं… यह कैसी गजब दिवाली है…. झुंझूनू की विजय भारती ने घर-घर द्वारे-द्वारे सजा मां का दरबार… आओ यश गान करें यश की हकदार की…, भगवती पारीक ‘मनु’ ने मां सचमुच होती है मां…, जैसी मर्मस्पर्शी कविता, गीतां से खूब समां बांधा। विजय लक्ष्मी पारीक ने अपना मार्मिक संस्मरण यादां के झरोखें से सुनाया। अध्यक्ष आशा कोठारी ने कहा कि अनुभूतियां का शब्दबद्ध होना कविता है। अपने गोष्ठी में प्रस्तुत गीतां कविताओं की सांगोपांग समीक्षा कर कवयित्रियां का उत्साहवर्द्धन किया। प्रो. कमल सिंह कोठारी ने धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन भगवती पारीक ‘मनु’ ने किया।
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