डॉ. सागर कछावा ने हाईकोर्ट और यूजीसी से की न्याय की गुहार, कहा– सुनवाई में मेरा पक्ष भी सुना जाए

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जेजेटी यूनिवर्सिटी चुड़ैला से जुड़ा मामला

झुंझुनूं । अजीत जांगिड़
श्री जगदीश प्रसाद झाबरमल टीबड़ेवाला विश्वविद्यालय चुड़ैला में लंबे समय तक योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा विभाग के विभागाध्यक्ष और सहायक प्रोफेसर रहे समाजसेवी व शिक्षाविद् डॉ. सागर सिंह कछावा ने विश्वविद्यालय की कथित अनियमितताओं और कथित अवैधानिक गतिविधियों के खिलाफ एक बार फिर बड़ा कदम उठाया है। डॉ. कछावा ने दिल्ली हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के चेयरमैन को पत्र भेजकर निवेदन किया है कि यदि विश्वविद्यालय द्वारा पीएचडी प्रवेश पर लगे प्रतिबंध को हटाने के लिए अदालत में याचिका दायर की जाती है, तो उसमें उनका पक्ष भी सुना जाए। डॉ. कछावा ने अपने पत्र में लिखित रूप से आरोप लगाया है कि वर्ष 2014 से 2023 तक विश्वविद्यालय में कार्यरत रहने के दौरान उन पर कई अवैधानिक आदेशों को मानने का दबाव बनाया गया। विरोध करने पर विश्वविद्यालय प्रशासन ने धमकाकर जबरन त्यागपत्र लिखवाया। त्यागपत्र के बाद उनके स्कैन दस्तावेज़ों व हस्ताक्षरों का दुरुपयोग कर विश्वविद्यालय के पक्ष में फर्जी दस्तावेज तैयार किए गए और उन्हें वेबसाइट पर अपलोड किया। जिससे विश्वविद्यालय को नैक रैंकिंग में लाभ मिल सके। जब उन्होंने इसकी शिकायत की और विश्वविद्यालय की अनियमितताओं को उजागर करने का प्रयास किया तो उन्हें मानहानि का नोटिस, झूठी एफआईआर और गुंडों द्वारा धमकियों का सामना करना पड़ा। इस प्रकरण में यूनिवर्सिटी के पक्ष का भी इंतजार रहेगा।

यूजीसी की कार्रवाई और विश्वविद्यालय पर रोक

बकौल, डॉ. कछावा की शिकायतों और प्रस्तुत तथ्यों के आधार पर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने जांच की। जांच में पाया गया कि विश्वविद्यालय का पीएचडी कार्यक्रम शैक्षिक मानकों के अनुरूप नहीं है और इसमें गंभीर अनियमितताएं हैं। इसके बाद आयोग ने विश्वविद्यालय को पांच वर्षों तक नए पीएचडी प्रवेश पर प्रतिबंधित कर दिया। डॉ. कछावा का कहना है कि अब विश्वविद्यालय इस रोक को हटाने के लिए न्यायालय का दरवाजा खटखटा रहा है। उन्होंने मांग की है कि अदालत में सुनवाई होती है, तो उसमें उनका पक्ष भी सुना जाए, ताकि शिक्षा जगत के साथ अन्याय न हो और छात्रों के भविष्य से समझौता न किया जाए।

यह केवल मेरा नहीं, समाज का प्रश्न है

डॉ. कछावा ने पत्र में अपनी आर्थिक व सामाजिक स्थिति का भी उल्लेख किया है। उन्होंने कहा कि मेरे पास न तो पर्याप्त साधन हैं और न ही कानूनी ताकत, लेकिन सच की लड़ाई मैं पूरी ईमानदारी से लड़ रहा हूं। यह केवल मेरा व्यक्तिगत मुद्दा नहीं है, बल्कि शोधार्थियों और छात्रों के भविष्य का सवाल है। यदि विश्वविद्यालय को मनमानी की छूट दी गई तो उच्च शिक्षा की पवित्रता ही दांव पर लग जाएगी। डॉ. कछावा के इस कदम ने शिक्षा जगत में हलचल मचा दी है। जानकारों का कहना है कि यह मामला केवल एक व्यक्ति का नहीं बल्कि पूरे उच्च शिक्षा तंत्र की पारदर्शिता और जवाबदेही का प्रतीक बन गया है।

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