महान गायक मोहम्मद रफी की पुण्यतिथि पर सुरों से दी श्रद्धांजलि

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‘धुन–दी रिदम ऑफ लाइफ’ के कलाकारों ने रफी साहब के अमर गीतों को सुरों में सजाया

झुंझुनू । अजीत जांगिड़
गुरुवार रात्रि शहर के थ्री डॉट्स चिल्ड्रन अकेडमी सभागार में भारतीय सिनेमा के अमर गायक मोहम्मद रफी की पुण्यतिथि पर एक भावभीनी संगीतमय श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में ‘धुन–दी रिदम ऑफ लाइफ’ संस्था के कलाकारों ने रफी साहब के कालजयी गीतों को अपनी मधुर आवाज में प्रस्तुत कर वातावरण को भावविभोर कर दिया। कार्यक्रम की शुरुआत प्रेमबिहारी माथुर द्वारा भावुक गीत ‘तुम मुझे यूं भुला न पाओगे’ से हुई। जिसने श्रोताओं के दिलों को छू लिया। इसके बाद उस्मान खान ने मोहब्बत भरा नगमा ‘मैंने पूछा चांद से’ पेश किया। जो श्रोताओं को रफी साहब के रोमांटिक युग में ले गया। पीआरओ हिमांशु सिंह और कोषाधिकारी प्रियंका लांबा ने मिलकर युगल गीत ‘झिलमिल सितारों का आंगन होगा’ गाया। जिसने श्रोताओं के बीच तालियों की गूंज भर दी। वहीं कुसुम चाहर और सनवर कुरैशी की जोड़ी ने ‘मुझे तेरी मोहब्बत का सहारा मिल गया होता’ प्रस्तुत कर रफी की भावपूर्ण गायकी को जीवंत कर दिया। रईस कुरैशी ने ‘तेरे नाम का दीवाना’ गीत गाया। जबकि पत्रकार फय्याज भाटी ने अपने चिर-परिचित अंदाज में ‘ना फनकार तुझसा तेरे बाद आया’ गाकर रफी साहब को सच्ची श्रद्धांजलि दी। प्रवीण टाक ने गज़लनुमा गीत ‘छलकाए जाम’ में श्रोताओं को भावनाओं से सराबोर कर दिया। एडवोकेट इरशाद फारूकी ने ‘दूर रहकर न करो बात’, डॉ. नफीस कुरैशी ने ‘क्या हुआ तेरा वादा’ और हबीबुर्रहमान खान ने ‘दर्दे दिल, दर्दे जिगर’ प्रस्तुत किए, जो रफी के दर्दभरे नगमों की झलक दिखाते रहे। रविंद्र शेखावत ने ‘खिलौना जानकर तुम तो मेरा दिल तोड़ जाते हो’ से मंच पर भावुकता घोल दी। डॉ. राजबाला ढाका ने ‘परदेसियों से ना अंखियां मिलाना’, रवि शर्मा ने ‘रुख से जरा नकाब उठा दो मेरे हजूर’ और मोहम्मद इस्माईल खान ने ‘चाहूंगा मैं तुझे सांझ सवेरे’ जैसे गीतों से रफी साहब की विविधता भरी गायकी को दर्शाया। इसके साथ मनोहरलाल धूपिया ने ‘मिले न फूल तो कांटों से दोस्ती कर ली’, डॉ. रजनेश माथुर ने ‘पुकारता चला हूं मैं’, मोहम्मद इब्राहिम खान ने ‘आज मौसम बड़ा बेईमान है’ और जाकिर सिद्दीकी ने ‘मैं इक राजा हूं तू इक रानी है’ जैसे गीतों से अपनी प्रस्तुति दी। अब्दुल हनान खान ने मोहब्बत भरा गीत ‘हुए हैं तुमपे आशिक हम’, डॉ. रवि शर्मा ने फिर से मंच संभालते हुए ‘दिल की आवाज़ भी सुन मेरे फ़साने पे न जा’ और अनिल चंदेलिया ने ‘अकेले हैं चले आओ’ गाकर माहौल को रोमांचित कर दिया। कार्यक्रम का समापन श्रीचंद द्वारा प्रस्तुत ‘आदमी मुसाफिर है’ के साथ हुआ, जो जीवन के दर्शन को सरल शब्दों में प्रस्तुत करता है। इस आयोजन में रफी साहब के चाहने वालों की अच्छी-खासी मौजूदगी रही। आयोजन स्थल पर सम्पत बारूपाल, भवानी सिंह करणावत, सरफराज़ शाह, रमजान अली, इम्तियाज़ तागला, सलाउद्दीन तागला सहित अनेक गणमान्य लोग उपस्थित थे। सभी ने सुरों के इस श्रद्धा सुमन के माध्यम से रफी साहब की अमर आवाज़ को याद किया। कार्यक्रम के दौरान मंच संचालन करते हुए आयोजकों ने बताया कि रफी साहब की आवाज़ केवल गीत नहीं, भावनाओं की सजीव अभिव्यक्ति है। इस संगीतमय श्रद्धांजलि ने यह स्पष्ट कर दिया कि भले ही समय बीत जाए, लेकिन रफी साहब की आवाज़ सदा अमर रहेगी।

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