आपरेशन में लापरवाही बरतने पर मरीज की एक आंख की रोशनी गई, उपभोक्ता आयोग ने अस्पताल और चिकित्सक को सुनाया फैसला

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साढ़े छह लाख रूपए की मुआवजा राशि 10 सालों के ब्याज के साथ देनी होगी

झुंझुनूं । अजीत जांगिड़
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग के अध्यक्ष मनोज कुमार मील एवं सदस्य प्रमेंद्र कुमार सैनी की बैंच ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में चिकित्सीय लापरवाही के मामले में मरीज के पक्ष में फैसला सुनाया है। आयोग ने सेठ आनंदराम जयपुरिया नेत्र हॉस्पिटल स्टेशन रोड नवलगढ़ व चिकित्सक डॉ. ईसरत सदानी को छह लाख पचास हजार रुपए का मुआवजा 45 दिवस के भीतर पीड़िता को अदा करने के आदेश दिए हैं। उपभोक्ता आयोग अध्यक्ष एवं पीठासीन अधिकारी मनोज कुमार मील ने फैसले में लिखा है कि प्रकृति ने मानव, पशु-पक्षी में कोई भेदभाव नहीं करते हुए सभी को दो आंखों का उपहार दिया है। एक—एक आंख का अपना अलग महत्व है। जब एक मानव अपनी पीड़ा लेकर चिकित्सक के पास आता है, तो वह उम्मीदों से भरा रहता है। वह चिकित्सक पर उसी रूप में विश्वास करता है, जिस प्रकार एक सद्भावी व्यक्ति अपने ईष्ट देवता या प्राकृतिक रूप से मौजूद सूर्य, जल, वायु व अग्नि के होने का विश्वास करता है। आयोग की टिप्पणी है कि इस प्रकरण में माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा मेडिकल नेगलीजेंसी के मामलों में सुस्थापित विधि की अवधारणा परिस्थितियां स्वयं बोलती है का सिद्धांत लागू होता है। आयोग ने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि आंख मनुष्य के लिए प्रकृति का एक अनमोल उपहार है। इसका महत्व इसलिए और भी बढ़ जाता है। क्योंकि आंख में होने वाली किसी भी तरह की तकलीफ या क्षति मानव जीवन के हर पल को प्रभावित करती है। जिससे गहन पीड़ा और असुविधा होती है। इस प्रकार आंख की क्षति न केवल शारीरिक बल्कि एक प्राकृतिक और अनमोल हानि भी है। आयोग ने अपने आदेश में यह भी कहा कि मरीज का उपचार विश्वास पर आधारित होता है। जब कोई व्यक्ति चिकित्सक के पास जाता है तो वह उसके जीवन की रक्षा की उम्मीद करता है, इसलिए चिकित्सक पर यह नैतिक और कानूनी दायित्व है कि वह पूर्ण सावधानी बरते।

13 साल पुराना मामला, 10 सालों से चल रहा था कोर्ट में

गौरतलब है कि वर्ष 2012 में परिवादी श्रीराम पुत्र नारायणराम निवासी जोगियों का बास तहसील लक्ष्मणगढ़ जिला सीकर ने आंख के उपचार के लिए सेठ आनंदराम जयपुरिया नेत्र हॉस्पिटल नवलगढ़ में ऑपरेशन करवाया था। ऑपरेशन के बाद मरीज को आंख में तेज दर्द, सूजन और दिखाई देने में परेशानी बनी रही। लगातार इलाज के बावजूद कोई सुधार नहीं हुआ। परिवादी ने वापस ऑपरेशन करने वाले चिकित्सक को दिखाया तब उसे दवाइयां दी गई। लेकिन तीन माह से अधिक समय बीत जाने पर भी स्वस्थ नहीं होने पर उसने झुंझुनूं, पिलानी, सीकर के बाद जयपुर स्थित एसएमएस अस्पताल में नेत्र विशेषज्ञ चिकित्सकों को दिखाया, तो बताया गया कि आंख में लैंस सही नहीं लगाया गया है। परिवादी की नेत्र की रोशनी जाने पर उसने जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग में परिवाद पेश किया।

अस्पताल के गैर-वाजिब तर्क खारिज किए

परिवादी की शिकायत पर आयोग ने संबंधित अस्पताल को तलब किया था, जिस पर अस्पताल ने तर्क दिया कि ऑपरेशन करने वाले चिकित्सक को आंखों की शल्य क्रिया का लंबा अनुभव है। 500 से अधिक ग्लूकोमा सर्जरी एवं हजारों की संख्या में मोतियाबिंद के ऑपरेशन का अनुभव है। वहीं संबंधित अस्पताल भी 1942 से स्थापित है। ऐसे में मरीज द्वारा आंख मसलने अथवा दवाई समय पर नहीं लेने की वजह से नेत्र ज्योति गई है। लेकिन आयोग ने सबूतों के आधार पर इस तर्क को खारिज करते हुए टिप्पणी की है कि मरीज ने ऑपरेशन करवाने के बाद भी उसी अस्पताल एवं संबंधित चिकित्सक के पास वापस जांच करवाई और अपनी तकलीफ बताई। उस समय के दस्तावेजों में मरीज द्वारा बरती गई लापरवाही का कोई जिक्र नहीं है, ना ही उसे हिदायत दी गई है। वहीं अस्पताल के संबंधित चिकित्सक के आवश्यक चिकित्सकीय दस्तावेज व अनुभव के साक्ष्य प्रस्तुत करने के संबंध में भी 3426 दिवस की लम्बी समयावधि में सुनवाई का अवसर दिया गया, लेकिन अस्पताल व उसके चिकित्सक द्वारा कोई दस्तावेजी साक्ष्य प्रस्तुत नहीं करने पर जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग ने दोनों पक्षों के परिवाद, जवाब परिवाद में अंकित कथनों एवं पत्रावली पर मौजूद दस्तावेजों, चिकित्सीय रिकॉर्ड का परीक्षण करते हुए प्रार्थी का ऑपरेशन करने वाले चिकित्सक व अस्पताल का सेवा दोष मानते हुए यह फैसला सुनाया है। आदेश के मुताबिक मरीज को दिए जाने वाले मुआवजे छह लाख पचास हजार रुपए की राशि पर 27 जनवरी 2015 से रकम अदायगी तक 6 प्रतिशत वार्षिक दर से ब्याज भी परिवादी को देय होगा।

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