झुंझुनूं।अजीत जांगिड़
ऋषि सेवा समिति चूरू एवं झुंझुनूं के सनातन प्रेमियों के तत्वावधान में खेमी शक्ति रोड के मुनि आश्रम स्थित सुवादेवी पाटोदिया सभागार में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के षष्ठ दिवस पूज्य राघव ऋषि ने कहा गोवर्धन लीला भक्ति बढ़ाने वाली लीला है। भक्ति को बढ़ाने के लिए कुछ समय पवित्र स्थल पर जाकर महालक्ष्मी आराधना करो तभी वे हमारी रक्षा करेंगी। क्योंकि संसार गोवर्धन प्रभु के सहारे है। दुख में, विपत्ति में मात्र प्रभु का आश्रय लो सहारा लो। भक्ति बढ़ने पर रासलीला में प्रवेश मिलता है। रासलीला जीव और प्रभु के मिलन की लीला है। शुद्ध जीव का अर्थ है माया के आवरण से रहित जीव। ऐसे जीव का ब्रह्म से मिलन होता है। सम्पूर्ण भागवत में राधा शब्द का उल्लेख नहीं है क्योंकि वे शुकदेव जी की गुरु हैं। शुकदेव जी पूर्वजन्म में तोता थे भागवत में श्रीशुक उवाच लिखा है श्री अर्थ है राधा। श्रीशुक में गुरु और शिष्य दोनों का नाम छिपा है। केवल कृष्ण और शुकदेव के नाम के आगे श्री प्रयुक्त हुआ है। श्री अर्थात् महालक्ष्मी। श्रीहरि का अर्थ है लक्ष्मीनारायण। संसार में सर्वांगीण सुख की प्राप्ति हेतु महालक्ष्मी आराधना आवश्यक है यह आराधना भगवान शिव द्वारा प्रणीत है। यदि समर्पण की भावना रहेगी तो रुक्मिणी रुपी भक्त का हरण तो भगवान ही करेंगे। सुदेव रुपी धर्मपारायण ब्राह्मण को माध्यम बनाएंगे तो जीव को भगवतप्राप्ति अवश्य होगी। महालक्ष्मी केवल भगवान नारायण की हैं जीव की नहीं अतः भगवान ने रुक्मिणी जी के साथ विवाह रचाया। जीव यदि महालक्ष्मी को मां की भावना से सत्कार एवं पूजित करेगा तो लक्ष्मीकृपा निस्संदेह होगी परन्तु जीव लक्ष्मीपति बनना चाहेगा तो पतन निश्चित है। रुक्मिणी विवाह में बड़ी धूमधाम से बारात आई व विवाह विधिवत सम्पन्न हुआ। निरंजनी अखाडा के महामंडलेश्वर स्वामी सत्यानंद गिरी ज़ी महाराज बृन्दावन की विशेष उपस्थिति रही। हुक्मीचन्द लोहिया द्वारा कन्यादान की परम्परा निभाई गई। मुख्य रूप से समिति के नवल किशोर जाखोटिया, महेश पारीख, सुशील लोहिया, राजेश सोनी, मनीष बजाज, मुरारीलाल कंदोई, राजेश ओझा सहित झुंझुनूं से गणेश हलवाई चिड़ावावाला, राजकुमार मोरवाल, सुभाष जालान, डॉ. डीएन तुलस्यान, महेश बसावतिया, परमेश्वर हलवाई, रामचन्द्र शर्मा पाटोदा, संदीप गोयल, रामचंद्र ठठेरा, विनोद पुजारी आदि अनेक गणमान्यों ने दिव्य आरती की। संयोजक अनिल कल्याणी ने बताया कि शुक्रवार की कथा में श्रीकृष्ण के बालसखा सुदामा जी से मिलन का प्रसंग रहेगा। शाम सात बजे से महात्रिपुरसुंदरी महालक्ष्मी के पूजनक्रम में भगवती का श्रृंगार पूजन रहा जिसमें नगर से जुड़े भगवती के कृपाप्राप्त साधकों का पूजन पूज्य ऋषिजी के नेतृत्व में कमलपुष्प एवं गुलाबपुष्पों से पूजन कराया गया।