सांस्कृतिक संस्थानों में आरक्षित वर्गों की उपेक्षा नहीं होनी चाहिए – सांसद बृजेंद्र सिंह ओला

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झुंझुनूं । अजीत जांगिड़
सांसद बृजेंद्र सिंह ओला ने लोकसभा में अतरांकित प्रश्न के माध्यम से संस्कृति मंत्रालय और इसकी संबद्ध संस्थाओं में ओबीसी, एससी और एसटी वर्गों के कर्मचारियों व अधिकारियों के अत्यंत कम प्रतिनिधित्व का मुद्दा उठाया। सांसद ने बताया कि आरक्षित वर्गों से वरिष्ठ पदों पर कार्यरत बहुत कम हैं। राष्ट्रीय संग्रहालय, साहित्य अकादमी, संगीत नाटक अकादमी, आईजीएनसीए, राष्ट्रीय अभिलेखागार आदि जैसे संस्थानों में वरिष्ठ स्तर पर प्रतिनिधित्व लगभग नगण्य है। उन्होंने कहा कि कई संस्थान एकल पद, संविदा भर्ती और विशेष श्रेणियां लागू नहीं जैसे बहानों से आरक्षण नीति से बच रहे हैं। जबकि नई नियुक्तियों में आरक्षित वर्गों की भागीदारी चिंताजनक रूप से कम है। सांसद ने लंबित पदों पर तुरंत आरक्षण लागू कर भर्ती करने तथा एससी, एसटी, ओबीसी अधिकारियों की पदोन्नति व प्रशिक्षण नीति लागू करने की मांग की है। उन्होंने कहा यह केवल आंकड़ों का सवाल नहीं, बल्कि न्याय, समान अवसर और संवैधानिक अधिकारों का प्रश्न है। संस्कृति मंत्रालय में भेदभावपूर्ण व्यवस्था स्वीकार नहीं की जा सकती।

केंद्र सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों का निजीकरण बंद करें

सांसद बृजेंद्र सिंह ओला ने लोकसभा में अतारांकित प्रश्न के माध्यम से भारी उद्योग क्षेत्र में रोजगार सृजन और सार्वजनिक उपक्रमों के निजीकरण का मुद्दा भी लोकसभा में उठाया। सांसद ने कहा कि सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के भारी उद्योगों को क्रमबद्ध तरीके से निजी हाथों में सौंपने की कोशिश कर रही है। जबकि संसद और जनता के सामने तथ्यों को छिपाया जा रहा है। भारी उद्योग मंत्रालय स्वयं स्वीकार कर रहा है कि उसके पास रोजगार सर्जन और निवेश से संबंधित कोई केंद्रीकृत डेटा नहीं है—जो सरकार की बिना अध्ययन और बिना मूल्यांकन वाली नीति को उजागर करता है। सांसद ने बताया सीसीईए पहले ही कई सीपीएसयूएस के निजीकरण/विनिवेश को सैद्धांतिक स्वीकृति दे चुकी है—जिनमें ब्रिज एंड रूफ कंपनी (बीएंडआर), सीमेंट कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (सीसीआई), इंजीनियरिंग प्रोजेक्ट्स इंडिया लिमिटेड (ईपीआईएल), शामिल है। सांसद ने कहा कि बिना डेटा, बिना प्रभाव अध्ययन और बिना पारदर्शिता के विनिवेश की प्रक्रिया क्यों चलाई जा रही है? सांसद ने मांग कि है कि भारी उद्योगों में विनिवेश/ निजीकरण की पूरी प्रक्रिया, विशेषकर 2016 से दी गई सभी सैद्धांतिक स्वीकृतियों की संसद द्वारा व्यापक समीक्षा कराई जाए और विनिवेश/निजीकरण को तत्काल रोका जाए।

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