नमृता जांगिड़ तीन साल से मिट्टी के गणपति बना रही हैं
सुलताना।आस्था के साथ अगर पर्यावरण का ध्यान रखा जाए तो भक्ति और भी सार्थक हो जाती है। सुलताना कस्बे में इस सोच को आगे बढ़ा रही हैं नमृता जांगिड़। वे पिछले तीन वर्षों से गणेश महोत्सव पर घर में इको फ्रेंडली गणपति स्थापित कर रही हैं। कुम्हार से लाई गई मिट्टी से बने इन गणेश प्रतिमाओं का विशेष महत्व है। क्योंकि पूजा-अर्चना के बाद विसर्जन की मिट्टी को फेंका नहीं जाता बल्कि उसी मिट्टी का उपयोग पौधारोपण के लिए किया जाता है। नमृता जांगिड़ बताती हैं कि पारंपरिक प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्तियां नदियों और तालाबों को प्रदूषित करती हैं। जबकि मिट्टी के गणपति से जल स्रोत सुरक्षित रहते हैं और मिट्टी दोबारा प्रकृति को लौटाई जा सकती है। यही वजह है कि उन्होंने परिवार और समाज के बीच इको फ्रेंडली गणपति को प्रोत्साहित करने का संकल्प लिया है। नमृता जांगिड़ के साथ विद्या जांगिड़ और अजय जांगिड़ भी इस अभियान से जुड़े हैं। तीनों मिलकर हर साल न सिर्फ मिट्टी के गणपति स्थापित करते हैं। बल्कि आसपास के लोगों को भी इसी तरह पर्यावरण-अनुकूल गणपति पूजन के लिए प्रेरित करते हैं। उनका मानना है कि पूजा केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि प्रकृति की रक्षा का भी माध्यम हो सकती है। गणपति विसर्जन के बाद उसी मिट्टी से पौधे लगाए जाते हैं। इन पौधों को परिवार मिलकर सींचता है और दूसरों को भी पौधारोपण की प्रेरणा देता है। इस पहल ने सुलताना कस्बे में कई परिवारों को जागरूक किया है और अब लोग धीरे-धीरे मिट्टी के गणपति को अपनाने लगे हैं।
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