नवाचारों से होगी किसानों की आमदनी दोगुनी – कृषि मंत्री

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जयपुर । कृषि मंत्री प्रभुलाल सैनी की उपस्थिति में बुधवार को पंत कृषि भवन में किनोवा प्रसंस्करण इकाई लगाने के लिए कृषि विभाग और ऑर्गेनिक वन टू वन कंपनी के बीच एमओयू हस्ताक्षरित हुआ। कंपनी द्वारा उदयपुर और टोंक में प्रसंसकरण इकाई स्थापित कि जाएगी। कंपनी द्वारा लगभग 20 करोड़ रुपये का निवेश किया जाएगा और इस इकाई के लगने से 270 लोगों को प्रत्यक्ष और एक हजार लोगों को अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिलेगा। इस एमओयू पर कृषि विभाग की ओर से अतिरिक्त मुख्य सचिव श्रीमती नीलकमल दरबारी और कंपनी के राजस्थान प्रभारी श्री राकेश सैनी द्वारा हस्ताक्षर किए गए। श्री सैनी ने बताया कि कृषि क्षेत्र में नवाचार अपनाकर ही किसानों की आमदनी दोगुनी हो सकती है। उन्होंने कहा कि किसानों की आमदनी बढ़ाने में यह एमओयू मददगार सिद्ध होगा। यह कंपनी राज्य में उत्पादित होने वाले किनोवा का किसानों से बायबैक करेगी। अभी राज्य में इसकी कोई प्रसस्ंकरण इकाई नहीं होने से इसकी बिक्री में समस्या आ रही थी, लेकिन इस इकाई के लगने के बाद, उन्हें किनोवा की अच्छी कीमत मिलेगी। यह प्रोजेक्ट एक वर्ष पूरा हो जाएगा और आगामी 3 माह में कंपनी द्वारा लघु प्रसंस्करण इकाई स्थापित कर दी जाएगी।
उन्होंने बताया कि राज्य के 11 जिलों के 10 हजार किसानों द्वारा किनोवा की खेती की जा रही है। बथुआ प्रजाति का सदस्य किनोवा को सुपर फूड और मदन ग्रेन कहा जाता था। इसकी खेती मुख्यतः दक्षिण अमरीका के पेरू, इक्वाडोर, बोलिबिया में की जाती है। नवाचारों को आगे बढ़ाते हुए राजस्थान में इसकी खेती पहली बार मौजूदा सरकार के कार्यकाल में ही शुरू हुई। राज्य में किसानों में इस खेती को लोकप्रिय बनाने के लिए सरकार द्वारा मिनी किट भी वितरित किए गए।
श्री सैनी ने बताया कि आज के युग में स्वास्थ्य के प्रति युवाओं का रूझान बढ़ा है, जिसमें जिम का उपयोग करना दैनिक दिनचर्या का हिस्सा हो गया है। फाईबर डाईट के लिये क्विनवा सुपर फूड के रूप जाना जाता है। किनोवा बथुआ प्रजाति का सदस्य है, जिसे रबी में उगाया जाता है. इसका वानस्पितक नाम चिनोपोडियम किनोवा है। इसके बीज को सब्जी, सूप, दलिया और रोटी के रूप में प्रयोग में लाया जा सकता है। पोषक तत्वों की बहुलता की वजह से इसे सुपर फूड और मदर ग्रेन कहा गया है। उन्होंने बताया कि इसे क्षारीय और बंजर भूमि में भी उगाया जा सकता है। किनोवा का पेड़ सूखा और पाला सहन करने के साथ कीट रोग सहनशील भी है। सैनी ने बताया कि उन्नत तरीके से खेती करने पर इसका उत्पादन एक हेक्टेयर में 20 से 30 क्विंटल तक हो सकता है।

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